देश
क्या 2019 में मोदी को रोक पाएगी माया-अखिलेश की जोड़ी?

उत्तर प्रदेश की सियासत में तेजी से उलटफेर देखने को मिल रहा है. बहुजन समाज पार्टी ने गोरखपुर और फूलपुर की लोकसभा सीटों पर होने वाले उपचुनाव में समाजवादी पार्टी के उम्मीदवारों को समर्थन दिया है. हालांकि पार्टी ने ये साफ किया है कि ये समर्थन सिर्फ उपचुनाव के लिए है, लेकिन सियासी जानकार इस गठबंधन को 2019 के लोकसभा चुनाव की तैयारी के रूप में देख रहे हैं. पिछले लोकसभा चुनाव पर नजर डालें तो सपा और बसपा के वोट प्रतिशत एकजुट हुए तो बीजेपी के सामने तगड़ी चुनौती पेश कर सकते हैं. लेकिन दोनों पार्टियों की अपनी महत्वाकांक्षाएं इस गठबंधन के आड़े आ सकती हैं. सीटों के बंटवारे के साथ ही वोट बैंक का ट्रांसफर इनके लिए चुनौती ही रहेगा.
बसपा ने अब तक सपा से एक बार और बीजेपी से मिलकर उसने तीन बार सरकार चलाई है, लेकिन चुनाव में पहले गठबंधन नहीं किया. बसपा ने सपा के साथ 1993 के विधानसभा चुनाव में एक बार गठबंधन किया था. उस समय सपा को 109 सीटें मिलीं, जबकि बसपा को 67 सीटें मिलीं. लेकिन करीब साल भर की सत्ता के बाद दोनों पार्टियों में मनमुटाव हो गया और बसपा ने समर्थन वापसी की घोषणा कर दी. इसके बाद बसपा ने बीजेपी से गठबंधन किया और मायावती पहली बार उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री बनने में कामयाब हुईं.
लेकिन ये सरकार ज्यादा दिन नहीं चली और 1996 में चुनाव हुए. इसके बाद मायावती ने दो बार और गठबंधन की सरकार बनाने में कामयाब रहीं. लेकिन 2007 में पूर्ण बहुमत आने के बाद उन्होंने गठबंधन की राजनीति से किनारा कर लिया. हालांकि केंद्र में कांग्रेस सरकार को उन्होंने बाहर से समर्थन देना जरूर जारी रखा. लेकिन उत्तर प्रदेश में वह अकेले ही मैदान में उतरीं.
वोट प्रतिशत के लिहाज से बीजेपी के सामने बड़ी चुनौती
2014 का लोकसभा चुनाव में वोटिंग प्रतिशत
बीजेपी (71)- 42 प्रतिशत (24.80 प्रतिशत वोट का इजाफा)
समाजवादी पार्टी (5)- 22.20 प्रतिशत (1.06 प्रतिशत का घाटा)
बसपा (0)- 19.60 प्रतिशत (7.82 प्रतिशत का घाटा)
कांग्रेस (2)- 7.50 प्रतिशत (10.75 प्रतिशत का घाटा)
अपना दल (2)- 1 प्रतिशत (2 प्रतिशत का इजाफा)
यानी मोदी लहर में भी सपा को ज्यादा नुकसान नहीं हुआ था, हालांकि बसपा को करीब 8 प्रतिशत का नुकसान हुआ था, जिसके कारण वह एक भी सीट जीत नहीं पाई थी. वहीं सपा इतने वोट पाने के बाद भी 5 सीटों पर सिमट गई थी. सिर्फ वोटिंग प्रतिशत पर गौर करें और अगर 2019 के लोकसभा चुनाव में सपा और बसपा के बीच गठबंधन होता है. तो 2014 के हिसाब से सपा-बसपा का वोट करीब 42 प्रतिशत तक पहुंच जाने का अनुमान है. ये बीजेपी द्वारा 2014 की मोदी लहर में हासिल किए गए वोटों के बराबर होगा. जाहिर है इस लिहाज से मुकाबला कांटे का देखने को मिल सकता है. अगर कांग्रेस भी इस गठबंधन में शमिल होती है तो तीनों का मत प्रतिशत 50 प्रतिशत के करीब पहुंच जाता है.
सपा-बसपा गठबंधन के सामने चुनौतियां
समाजवादी पार्टी और बसपा के बीच गठबंधन होगा या नहीं, ये तो 14 मार्च का उपचुनाव परिणाम के बाद ही सामने आएगा. कारण ये है कि अगर जीत मिलती है तो गठबंधन तय मानिए. वहीं अगर हार मिलती है तो ये साफ हो जाएगा कि सपा प्रत्याशी को बसपा के वोट ट्रांसफर नहीं हुए.
2017 के विधानसभा चुनाव की बात ही कर लें तो सपा और कांग्रेस के बीच गठबंधन हुआ था. लेकिन ये गठबंधन वोट ट्रांसफर के गणित में उलझ कर रह गया. चुनाव परिणाम ने साफ किया कि सपा का परंपरागत वोट न कांग्रेस को गया और न ही कांग्रेस के परंपरागत वोटर ने सपा वोट दिया. बाद में चुनाव समीक्षा में भी अखिलेश ने ये कहा कि जिन सीटों पर गठबंधन किया गया, वहां उन्हें कोई फायदा नहीं मिला.
उत्तर प्रदेश की राजनीति में सपा से ज्यादा बसपा के पास गठबंधन का अनुभव रहा है. और ये भी दिलचस्प है कि किसी भी गठबंधन में बसपा सुप्रीमो मायावती ने अपने फायदे से कभी समझौता नहीं किया. चाहे वह बीजेपी के साथ छह-छह महीने की सरकार चलाने का मामला हो या सपा सरकार से ही समर्थन वापसी हो. मायावती ने आक्रामक ढंग से ही गठबंधन किया. इस बार भी मायावती एक हाथ दे और एक हाथ ले की बात कर रही हैं. वह लोकसभा उपचुनाव में बीजेपी को हराने के लिए वोट देने की बात कर रही हैं, लेकिन सपा से गठबंधन की बात नहीं कर रहीं. वहीं राज्यसभा के लिए बसपा प्रत्याशी को समर्थन मांग रही हैं और सपा को विधानपरिषद में ही समर्थन की बात कर रही हैं.
मोटे तौर पर यूपी में 45 प्रतिशत के करीब ओबीसी वोट हैं. वहीं दलित और सवर्ण के 20-20 प्रतिशत और मुस्लिम मतदाता 15 प्रतिशत माने जाते हैं. 2014 के चुनाव में बीजेपी को हिंदू वोट मिला, जिसमें सवर्ण के साथ ही दलित और ओबीसी भी शामिल थे. यूपी के कई क्षेत्रों में दलितों की यादवों से सीधी लड़ाई है. ऐसे में गठबंधन जीत की गारंटी नहीं माना जा सकता.
गोरखपुर-फूलपुर उपचुनाव में वोटों की गणित
2014 में बीजेपी को गोरखपुर में 51.8 फ़ीसदी वोट मिला था, जबकि सपा को 21.7 फीसदी और बसपा को 16.9 फ़ीसदी वोट मिले थे. अगर सपा और बसपा के वोट प्रतिशत को मिला लिया जाए तो 38.6 फ़ीसदी ही वोट होते हैं.
वहीं फूलपुर में पिछली बार बीजेपी को 52.4 फीसदी वोट मिले थे. सपा को 20.3 और बसपा को 17 प्रतिशत वोट मिले थे. यहां भी दोनों का वोट शेयर 37.3 फीसदी ही होता है. इस लिहाज से भी बीजेपी का पलड़ा भारी लग रहा है.













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सड़क दुर्घटना में हुई TV एक्टर की मौत, बलिया के रहने वाले थे अमन जायसवाल

बलिया : मुंबई से एक बेहद दुखद खबर सामने आई है। बेल्थरा रोड के रहने वाले होनहार टीवी कलाकार अमन जायसवाल का शुक्रवार को एक सड़क हादसे में निधन हो गया। फिल्म सिटी के पास दोपहर करीब 3 बजे उनकी बाइक को पीछे से आ रहे एक तेज रफ्तार ट्रेलर ने जोरदार टक्कर मार दी। इस भयानक हादसे में अमन गंभीर रूप से घायल हो गए। तुरंत अस्पताल ले जाने के बावजूद, डॉक्टर उन्हें बचा नहीं सके।
अमन जायसवाल बेल्थरा रोड के रहने वाले थे। प्रतिष्ठित व्यापारी दिनेश जायसवाल के पौत्र और आशीष जायसवाल के बेटे थे। वह मुंबई में रहकर टीवी सीरियल्स में मुख्य किरदार निभा रहे थे और अपने काम से बलिया का नाम रोशन कर रहे थे। अमन मुंबई में जब भी किसी प्रोजेक्ट को साइन करते उनके नाम के साथ बलिया का जिक्र जरुर होता था। वह अब तक तीन लोकप्रिय टीवी सीरियल्स में मुख्य भूमिका निभा चुके थे। उनकी आकस्मिक मौत ने पूरे बेल्थरा रोड को गहरे शोक में डाल दिया है।
बड़े बड़े एक्टर्स के साथ धारावाहिक ‘धरतीपुत्र नंदिनी’ अमन जायसवाल का पहला लीड शो रहा। इसमें उन्होंने आकाश का किरदार निभाया था। जिसके बाद से उनकी पोपुलिराटी दिन ब दिन बदती जा रही थी और उन्हें कई प्रोजेक्ट मिले थे। बलिया के अमन फिल्मी सिटी कही जाने वाली मुंबई में रहकर कई फ़िल्म और सीरियल में किया। अमन की सफलता और संघर्ष की कहानी, युवाओं को प्रेरित करती आई है। अमन ने साबित किया कि छोटे शहर के लोग भी बड़े सपने देख सकते हैं और उन्हें पूरा कर सकते हैं।
जानकारी के अनुसार, शुक्रवार को अमन बाइक से फिल्म सिटी के पास दोपहर करीब 3 बजे किसी ऑडिशन में जा रहे थें। अचानक हाईवे पर एक ट्रक ने उन्हें पीछे से टक्कर मार दी। घायल अमन को उनके दोस्त अभिनेश मिश्रा तुरंत कामा अस्पताल लेकर गए, लेकिन हादसे के आधे घंटे बाद अमन ने दम तोड़ दिया।
अमन की मौत की खबर सुनते ही उनके परिवार में कोहराम मच गया। माता-पिता की हालत इतनी बिगड़ गई कि उन्हें अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा है। बेल्थरा रोड में लोग इस असामयिक घटना से गहरे सदमे में हैं। अमन जैसे होनहार कलाकार का यूं असमय जाना वाकई में बेहद दुखद है।
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पंजाब में AAP ने तोड़ा गठबंधन, अकेले लड़ने का किया ऐलान

कांग्रेस को एक और बड़ा झटका देते हुए पंजाब में आम आदमी पार्टी ने गठबंधन तोड़कर अकेले चुनाव लड़ने का ऐलान किया है। इस ऐलान से पहले आम आदमी पार्टी ने आगामी लोकसभा चुनाव में असम की तीन सीटों के लिए उम्मीदवारों के नाम की गुरुवार को घोषणा की। उसने उम्मीद जताई कि विपक्षी दलों का गठबंधन ‘इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इन्क्लूसिव अलायंस’ (इंडिया) उन्हें इन सीटों से चुनाव लड़ने की अनुमति देगा।
‘आप’ के राज्यसभा सदस्य संदीप पाठक ने संवाददाता सम्मेलन में तीन उम्मीदवारों के नाम की घोषणा की। उन्होंने बताया कि डिब्रूगढ़ से मनोज धनोहर, गुवाहाटी से भावेन चौधरी और सोनितपुर से ऋषि राज को उम्मीदवार बनाया गया है। उन्होंने कहा कि ‘हम एक परिपक्व गठबंधन के भागीदार हैं और हमें पूरा विश्वास है कि ‘इंडिया’ गठबंधन इसे स्वीकार करेगा. लेकिन चुनाव जीतना सबसे महत्वपूर्ण है। हम इन तीन सीट के लिए तुरंत तैयारी शुरू कर रहे है।’
पाठक ने कहा कि ‘अब सभी चीजों में तेजी लानी चाहिए. कई महीनों से बातचीत जारी है लेकिन अभी तक कोई नतीजा नहीं निकला है। हम मोदी सरकार के खिलाफ लड़ाई में ‘इंडिया’ गठबंधन के साथ हैं। गठबंधन के संबंध में सभी फैसले तुरंत लिए जाने चाहिए।’
देश
लोकसभा चुनाव से पहले AAP ने किया बडे़ स्तर पर संगठन विस्तार, कई विंगों में हुई नियुक्तियां

पंजाब में लोकसभा चुनाव से पहले आम आदमी पार्टी ने संगठन विस्तार करते हुए बड़े स्तर पर पदाधिकारियों की नियुक्तियां की हैं। करीब 2500 से अधिक लोगों को संगठन में जगह दी गई है। कुछ दिन पहले पार्टी जॉइन करने वाले नेताओं को बड़ी जिम्मेदारियां मिली है।
गुरदासपुर से भाजपा छोड़ AAP में शामिल हुए स्वर्ण सलारिया को पार्टी का उपाध्यक्ष नियुक्त किया है। जबकि डॉ. केडी सिंह और राजिंदर रीहल को स्टेट जॉइंट सेक्रेटरी लगाया गया है। वहीं, फतेहगढ़ साहिब लोकसभा हलका में कैप्टन हरजीत सिंह को लोकसभा वाइस प्रेसिडेंट नियुक्त किया है। इसके अलावा अल्पसंख्यक विंग में बड़ी नियुक्तियां की गई हैं। पार्टी का लक्ष्य सभी 13 लोकसभा सीटों को फतह करना है। क्योंकि CM भगवंत मान पहले ही पंजाब में इस बार 13-0 का नारा दे चुके हैं।
पार्टी की तरफ से जिला से लेकर स्टेट तक संगठन के सभी विंगों में नई तैनाती की गई हैं। इसमें जिला स्तर के डॉक्टर विंग, एक्स इंप्लाई विंग, स्वर्णकार विंग, ट्रांसपोर्ट विंग, इंटेक्चुअल विंग और बीसी विंग शामिल है। बीसी विंग में सबसे ज्यादा लोगों को जगह दी गई। पार्टी ने संगठन को इस तरह मजबूत किया है कि ब्लॉक व गली तक उनकी पहुंच संभव हो पाए। इससे पहले भी पार्टी इस तरह इतने बड़े स्तर पर नियुक्तियां कर चुकी है।
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