Connect with us

बलिया स्पेशल

बलिया में इस बार किसके ज़िम्मे होगी चंद्रशेखर की विरासत ?

Published

on

बलिया. बागी बलिया. चंद्रशेखर का बलिया. तो आपको हम बलिया लिए चलते हैं. यदि इस चुनावी सरगर्मी में हम बलिया को देखें तो हमें बलिया और उसके प्रभाव क्षेत्र के सभी लोकसभा सीटों पर एक बात साफ दिखती है कि आम जनमानस की भावुकता और लोकसभा के प्रत्याशी का चेहरा ही चुनाव में मायने रखता है. 2014 के चुनाव में भी मोदी लहर पर सवार होकर जीते बीजेपी के भरत सिंह को 37% मत मिले. तो चंद्रशेखर के पुत्र व समाजवादी पार्टी के नीरज शेखर को 27% मत मिले, और कौमी एकता दल के अफजाल अंसारी को 16% मत मिले. परंपरागत तौर पर सपा को मिलने वाले मुस्लिम मतों के अफजाल के साथ चले जाने का परिणाम हुआ कि नीरज शेखर हार गए.

इस बार बीजेपी ने वीरेंद्र सिंह मस्त को अपना उम्मीदवार बनाया है. वे खुद को चंद्रशेखर का शिष्य मानते हैं. संघ के ढर्रे पर खेती-किसानी पर राजनीति करते हैं. भदोही के निवर्तमान सांसद हैं. हालांकि भरत सिंह का टिकट कटना बताता है कि बलिया को लेकर भाजपा का आत्मविश्वास डिगा है. भरत सिंह को लेकर आम जनमानस तो असमंजस में था ही वहीं भाजपा का जिला नेतृत्व भी भीतरखाने से बड़ा गेम कर रहा था. इस बीच नीरज शेखर को लेकर लोग आश्वस्त दिखे. आम जन से बातचीत में ऐसा प्रतीत होता है कि नीरज शेखर की उम्मीदवारी पर महागठबंधन फायदे में रहेगा. ऐसे में बलिया का चुनावी माहौल पता करने हेतु हमारी टीम भी बलिया के तीन विधानसभाओं में घूमी. यहां यह भी बताना जरूरी है कि चंद्रशेखर की मृत्यु के बाद हुए उपचुनाव में भाजपा के वर्तमान प्रत्याशी वीरेंद्र सिंह मस्त चुनाव हार गए थे और नीरज शेखर को जीत मिली थी.

बलिया

चंद्रशेखर इफेक्ट?

गौरतलब है कि नीरज शेखर बलिया से दो बार सांसद रह चुके हैं. छवि तो साफ सुथरी है लेकिन वे सड़क पर कम ही नजर आए हैं. चंद्रशेखर को लेकर भावुक हो जाने वाली जनता भी नीरज शेखर के प्रति खुल कर स्नेह दिखाती है. हालांकि अब तक उनकी उम्मीदवारी तय नहीं है लेकिन उनकी सुलभता और व्यवहार उन्हें बढ़त दिलवाता है. यहां यह भी बताना है कि बलिया लोक सभा में 5 विधानसभा साझा हो रहे हैं. जिनमे ग़ाज़ीपुर का जहूराबाद और मुहम्मदाबाद एवं बलिया के बैरिया, बलिया सदर और फेफना हैं.

एक नज़र पिछले चुनाव पर

एक नजर पिछले लोक सभा पर डालें तो 2014 के चुनाव में मोदी का कथित मैजिक सबपर तारी था. सांसद के चेहरे से अधिक मोदी मैजिक चर्चा का विषय था. चाय पर चर्चा से लगायत बूथ स्तर पर नए-नए कार्यक्रमों ने भाजपा के पक्ष में एक सकारात्मक माहौल खड़ा कर दिया था. यहां बीजेपी की नाव भले ही जर्जर रही हो लेकिन उसे मोदी लहर ने किनारे लगा दिया. तिसपर से भरत सिंह का एक पुराना नेता होना उनके पक्ष में रहा. नीरज शेखर तमाम प्रभाव व कोशिश के बावजूद हार गए.

कौमी एकता दल और बसपा का कोण

यहां यह भी बताना जरूरी है कि बीते चुनाव में कौमी एकता दल के अफजाल अंसारी को यहां 17 फीसदी वोट मिले थे. इस वोट को सपा के वोटबैंक में तगड़ी सेंधमारी कहा जा सकता है. बसपा के वीरेंद्र पाठक को भी 14 फीसदी वोट मिले थे. इस बार सपा और बसपा साथ हैं और अफजाल अंसारी के बसपा बैनर तले गाजीपुर से लड़ने के चर्चे हैं.

कहां थी कांग्रेस?

बलिया में कहां रही कांग्रेस या फिर कहां रहेगी यह बड़ा सवाल है. अब तो प्रियंका गांधी भी मैदान में हैं. उन्हें खासतौर पर पूर्वांचल का प्रभारी बनाया गया है. बीते चुनाव में किसी जमाने के कद्दावर राजनेता रहे कल्पनाथ राय की पत्नी  सुधा राय को कांग्रेस ने टिकट दिया था. उन्हें महज 1.5 फीसदी वोट मिले थे. कुल मिलाकर देखें तो पिछले चुनाव में बलिया मोदी लहर के प्रभाव में आया तो जरूर मगर जातीय व धार्मिक समीकरण के साथ ही सबकी दलगत राजनीति बची रही.

ऐसे में 2019 का चुनाव बलिया लोकसभा के लिए और अधिक उल्लेखनीय हो जाता है. बीजेपी ने बीरेंद्र सिंह मस्त की उम्मीदवारी तय कर दी है. गठबंधन में नीरज शेखर का नाम सबसे ऊपर है. कांग्रेस के पास अब भी प्रत्याशी खोजे नहीं मिल रहा. ऐसे में यह चुनाव विधानसभाओं के समीकरण पर अधिक निर्भर होता दिख रहा है.

बीते सप्ताह हमारी टीम ने बलिया लोकसभा के अंतर्गत आने वाले तीन विधानसभाओं में जा कर सामान्य जनमानस से संवाद किया. हमने पाया कि अब भी कई जगहों खासतौर पर गरीब परिवारों में मोदी इफेक्ट कायम है. लोग किसी भी तरह से ‘विपक्ष के न होने पर मोदी ही’ की बात कर रहे हैं. ऐसे में प्रत्याशी का चेहरा और उनके पार्टी का राजनीतिक पैटर्न, जातीय समीकरण काफी हद तक मायने रखेगा.

बैरिया विधानसभा में हल्दी क्षेत्र के आस पास चाय की दुकान पर बात शुरू हुई तो बीजेपी विधायक सुरेंद्र सिंह (विवादित बयानों वाले) के मायावती के बयान पर चर्चा देखने-सुनने को मिली. चाय वाला राजभर था सो उखड़ा हुआ था. मौके पर एक ठाकुर साहब थे जो बलिया अस्पताल से दवा लेकर आए थे और महंगाई पर बहस शुरू करना चाह रहे थे. हमें वहां एक पंडितजी भी मिले जो अखिलेश के साथ थे. लोकसभा पर बातचीत मे लोग ‘मोदी ही’ से शुरू हुए और अंत में ‘कोई विकल्प ना होने के कारण ऐसा होगा’ के निष्कर्ष पर आ गए. कुछ और जगहों पर ऐसी ही बातचीत इस बात की पुष्टि करती हैं कि बैरिया या लगभग सभी जगहों पर कथित मोदी मैजिक के बजाय जातीय समीकरण हावी रहेगा .

बैरिया

बीते विधानसभा में क्या रहा बैरिया का पैटर्न?

एक नजर बैरिया के निर्णायक मतों को देखें तो ठाकुर और यादव बिरादरी के लोग यहां प्रभावी हैं. 2017 के विधानसभा चुनाव में भी सपा के जयप्रकाश अंचल दूसरे स्थान पर रहे. यहां बीजेपी के सुरेंद्र सिंह को जीत मिली. यदि भाजपा और सपा के बीच ठाकुर मत आपस में बंट भी जाएं तो यादव वोट नीरज शेखर को बढ़त दिला सकते हैं. ऐसा साफ दिखता है कि बैरिया में महागठबंधन मजबूत है.

बलिया सदर बणिक समुदाय के प्रभाव में है. शहर के छोटे बड़े कई व्यापारियों से बातचीत यह दिखा कि जीएसटी लागू होने की वजह से बीजेपी को घाटा हो सकता है. नोटबंदी को भी लगभग सभी व्यापारियों ने नकारात्मक करार दिया. बलिया सदर से मौजूदा विधायक आनंद स्वरूप शुक्ला हैं. वे बीजेपी के बैनर तले जीते. वे इलाके के स्थानीय सतीशचन्द्र कॉलेज के छात्रसंघ अध्यक्ष रह चुके हैं, मगर शहर के तीनों कॉलेजों में उन्हें लेकर छात्रों में तल्खी दिखी. व्यापारी अथवा सक्रिय लोग भी उनके शहर में कम रहने पर बात करते रहे. इसका भी असर इस चुनाव पर पड़ सकता है.

गौरतलब है कि यहां हम वास्तुस्थिति को तुलनात्मक तौर पर देखने व दिखाने की कोशिश रहे हैं. सदर में काफी संख्या में ठाकुर और ब्राह्मण मत हैं. वे प्राय: उन्हें ही जिताते रहे हैं जो जीत रहा हो. ऐसे में नीरज शेखर का यहां से उम्मीदवार बीजेपी के लिए खासी मुश्किल खड़ा कर सकता है. यहां हम आपको बता दें कि फेफना विधानसभा से उपेंद्र तिवारी विधायक हैं. वे बीजेपी के बैनर तले यहां से जीते हैं. वहीं पूर्व सपाई और वर्तमान में बसपा के साथ राजनीति कर रहे अम्बिका चौधरी भी कद्दावर नेता हैं. मुलायम सिंह के बेहद करीबी हैं, मगर पिछले विधानसभा चुनाव में टिकट कटने पर बसपा से उम्मीदवार थे. वर्तमान गठजोड़ के हिसाब से उन्हें गठबंधन के साथ ही रहना होगा.

क्या है फेफना और जहूराबाद का जातीय समीकरण?

जाति के लिहाज से देखें तो फेफना विधानसभा यादव और राजभर बाहुल्य क्षेत्र है. कई बार भूमिहार भी निर्णायक मतदाता साबित होते हैं. बीजेपी भले ही उपेंद्र तिवारी के उभार का फायदा उठाने की कोशिश करे लेकिन अम्बिका चौधरी और खुद नीरज शेखर का प्रभाव भी कम नही है. यादव बाहुल्यता से यहां गठबंधन का पलड़ा भारी है.

जहूराबाद विधानसभा गाजीपुर जिले में पड़ता है. यहां भूमिहार और राजभर निर्णायक मतदाता हैं. ठाकुर भी भरपूर हैं. इस बात के मजबूत आसार हैं कि भूमिहार मत बीजेपी के कद्दावर नेता मनोज सिन्हा के प्रभाव में रहेंगे. तो गठबंधन के लिए जहूराबाद में सेंध लगाना एक मुश्किल काम होगा. अपनी बेबाक बयानबाजी के लिए सुर्खियों में रहने वाले ओम प्रकाश राजभर यहां के विधायक हैं. इनकी पार्टी का और बीजेपी का 2014 से गठबंधन है. राजभर समुदाय के ओमप्रकाश का प्रभाव पूर्वांचल के लगभग हर सीट पर देखा जा सकता है. वे सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं. मुहम्मदाबाद विधानसभा भी गाजीपुर का हिस्सा है. वर्तमान में बीजेपी के चर्चित नेता स्व. कृष्णानंद राय की पत्नी अलका राय वहां से विधायक हैं. मुस्लिम और भूमिहार यहां के निर्णायक वोट हैं.

अंसारी और राजभर इफेक्ट कितना प्रभावी?

पूर्वांचल की राजनीति के लिहाज से यह सवाल सौ टके का है कि अंसारी परिवार किधर है. कभी बनारस से लड़ने वाले मुख्तार अंसारी का कुनबा इस बार किसे सपोर्ट कर रहा है. बीजेपी कोई कोरकसर छोड़ेगी ऐसा दिखता नहीं. राजभर समुदाय का पूर्वांचल में के भीतर वोट और उसके नेता का भाजपा के साथ गठबंधन में होना भाजपा के पक्ष में जा सकता है. जातीय राजनीति से इनकार करने वाली भाजपा साल 2014 से ही ओम प्रकाश राजभर के नाज-ओ-नखरे उठा रही है. यदि भाजपा फिर से इस वोटबैंक को साध पाई तो यहां बड़ा खेल हो सकता है.

बलिया राजनीति

राष्ट्रवाद कि जातिवाद?

यहां अंत में हम आपको बताते चलें कि भाजपा खुद को राष्ट्रवाद और विकास की राजनीति करने वाला दल कहती है. जबकि भाजपा ने पूर्वांचल में जातिगत राजनीति करने वाले दो दलों क्रमशः अपना दल और सुभासपा के साथ गठबंधन कर लिया है. अपना दल को कथित तौर पर पटेल बिरादरी की वकालत करने वाले दल के तौर पर देखा जाता है ओम प्रकाश राजभर की पार्टी राजभर समुदाय की वकालत करता है. कहना न होगा कि बीजेपी इस बार कहीं भी विकास के नाम पर वोट मांगती नहीं दिख रही.
गठबंधन के उम्मीदवारों को देखते हुए भाजपा अपने प्रत्याशी उतार रही है. गठबंधन की भी अपनी मुश्किलें हैं किसे कहां से लड़ाया जाए और अपने भीतरघात पर काबू पाया जा सके. वहीं कांग्रेस प्रत्याशी खोज रही है. कम से कम बलिया और सलेमपुर की स्थिति तो यही है. वर्तमान सरकार के प्रति नाराज़गी का लाभ गठबंधन को मिलने की प्रबल संभावनाएं हैं. कुल मिलाकर बलिया का चुनाव गठबंधन बनाम भाजपा ही दिख रहा है. कांग्रेस कहीं दूर तक नज़र नही आती…

(लेखक बलिया के मूल निवासी हैं और बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के छात्र है)

साभार सहित धन्यवाद-  thebiharmail.com

Advertisement        
Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

featured

बलिया के एकलौते बसपा विधायक पर क्यों बैठी विजलेंस जांच ?

Published

on

बसपा के रसड़ा विधायक उमाशंकर सिंह की मुश्किलें बढ़ गई है। विजलेंस विभाग ने उनकी और उनके परिवार की संपत्तियों की जांच शुरू कर दी है। उमाशंकर सिंह की मुश्किलें और बढ़ सकती हैं क्योंकि विभाग ने विधायक ही नहीं उनकी पत्नी, बेटा और बेटी के नाम खरीदी गईं जमीन, मकान, फ्लैट, व्यवसायिक और कृषि जमीन की पूरी जानकारी मांगी है।

वैसे सबको पता है नेता जी लोगों की आय से अधिक संपत्ति तो होती ही है। पुरानी स्क्रिप्ट है। लेकिन जब तक कोई नेता सत्ता के करीब होता है, तब तक उसकी संपत्ति पर कोई सवाल नहीं उठता। मगर विपक्ष पर यह कभी भी हो सकता है। उमाशंकर सिंह का मामला भी कुछ ऐसा ही लगता है। बसपा के इस इकलौते विधायक के खिलाफ अचानक जांच शुरू हो गई है। महानिरीक्षक प्रयागराज ने सभी उप निबंधन कार्यालय को निर्देशित किया है कि उमाशंकर सिंह, उनकी पत्नी पुष्पा सिंह, बेटी यामिनी व बेटे युकेश के नाम से प्रदेश में खरीदी गई जमीन, मकान, फ्लैट या अन्य प्रकार की संपत्तियों की जानकारी विजलेंस विभाग को उपलब्ध कराए।

उमाशंकर सिंह की बसपा के इकलौते विधायक हैं। 2022 में विधानसभा चुनाव में जीत दर्ज की थी। जब पूरे यूपी में बसपा का सूपड़ा साफ हो गया, तब भी वह अपनी सीट बचाने में कामयाब रहे। बीते दिनों मायावती काफी मुखर है लेकिन क्या अब इसका खामियाजा उमाशंकर सिंह को भुगतना पड़ रहा है?

बसपा का हाल किसी से छिपा नहीं है। मायावती पार्टी को चुनावी मोड में कम, ‘मैनेजमेंट मोड’ में ज्यादा चला रही हैं। यूपी में अब बसपा केवल ‘बीजेपी की B-Team’ कहकर बदनाम हो रही है। लेकिन ऐसे में उमाशंकर सिंह के खिलाफ कार्रवाई को सिर्फ व्यक्तिगत मामला मान लेना भी सही नहीं होगा।

सवाल यह भी है कि आखिर राजनीति में आने के बाद कुछ नेताओं की संपत्ति मॉल्टीप्लाई मोड में कैसे चली जाती है? 2009 में जब उमाशंकर सिंह ने कंस्ट्रक्शन कंपनी खोली थी, तब शायद किसी ने नहीं सोचा होगा कि कुछ सालों में उनकी संपत्तियों की लिस्ट इतनी लंबी हो जाएगी कि सरकार को उसकी जांच करवानी पड़ेगी।

अगर कोई आम आदमी बिना पक्के दस्तावेजों के 5 लाख रुपये की जमीन भी खरीद ले, तो टैक्स विभाग और पुलिस उसके पीछे पड़ जाते हैं। मगर विधायक, सांसद, मंत्री खुलेआम करोड़ों की संपत्ति बना लेते हैं, और हमें लगता है कि यह सब “मेहनत” की कमाई है!

फ़िलहाल सूचना यह है कि उमाशंकर सिंह की तबियत खराब है। वह बीमार चल रहे हैं। लेकिन विजलेंस ने भी अपना काम शुरू कर दिया है

Continue Reading

featured

बलिया में ATM कार्ड के जरिए फ्राड करने वाले गिरोह का भंडाफोड़, Encounter के बाद 4 गिरफ्तार

Published

on

बलिया के हल्दी में पुलिस ने मुठभेड़ के बाद बिहार के चार अपराधियों को गिरफ्तार कर एटीएम कार्ड से धोखाधड़ी करने वाले एक अंतरराज्यीय गिरोह का भंडाफोड़ किया। अधिकारियों ने बृहस्पतिवार को यह जानकारी दी।

अधिकारियों ने बताया कि पुलिस की जवाबी कार्रवाई के दौरान पैर में गोली लग से एक आरोपी घायल हो गया।

अपर पुलिस अधीक्षक कृपा शंकर ने संवाददाताओं को बताया कि बुधवार रात को पुलिस को सूचना मिली कि हृदयाचक तिराहा से पीपा पुल की ओर जाने वाली सड़क पर एक कार में कुछ संदिग्ध लोग आ रहे हैं।

उन्होंने बताया कि जब पुलिस ने वाहन को रोकने का प्रयास किया तो चारों संदिग्ध कार से उतरकर भागने लगे।

शंकर ने कहा, ‘‘पीछा किए जाने पर अपराधियों में से एक ने पुलिस दल पर गोली चला दी, जिसके बाद पुलिस ने जवाबी कार्रवाई की। एक आरोपी पैर में गोली लगने से घायल हो गया, जिसके बाद पुलिस ने सभी चार संदिग्धों को काबू कर उन्हें गिरफ्तार कर लिया।’’

अधिकारी ने कहा, ‘‘गोली लगने से घायल हुए बिहार के पूर्वी चंपारण जिले के निवासी बच्चा लाल महतो (27) को जिला अस्पताल में भर्ती कराया गया है। अन्य तीन की पहचान साहेब कुमार महतो (32), मदन महतो (37) और लाल बाबू महतो (38) के रूप में हुई है। ये सभी बिहार के हैं।’’

पुलिस ने आरोपियों के पास से दो देसी पिस्तौल (.315 बोर), दो कारतूस, दो खाली खोल, विभिन्न बैंकों के 63 एटीएम कार्ड, एक कार और 5,200 रुपये भी जब्त किए हैं।

अपर पुलिस अधीक्षक ने कहा, ‘‘पूछताछ के दौरान, आरोपियों ने एटीएम कार्ड धोखाधड़ी में संलिप्त एक गिरोह का हिस्सा होने की बात कबूल की। वे सीधे-साधे लोगों को निशाना बनाकर उनका एटीएम कार्ड बदल लेते थे और फिर उनके रुपये निकाल लेते थे या अंतरित कर लेते थे। चोरी की रकम गिरोह के सदस्यों के बीच बांटी जाती थी।’’

अधिकारी ने बताया कि आरोपियों ने यह भी कबूल किया कि उन्होंने बलिया और उत्तर प्रदेश के अन्य जिलों के साथ-साथ दिल्ली में भी कई लोगों को ठगा है।

पुलिस रिकॉर्ड से पता चलता है कि बलिया, दिल्ली और अन्य स्थानों पर तीनों के खिलाफ कई मामले दर्ज हैं। पुलिस ने बताया कि गिरोह के अन्य सदस्यों और देश के विभिन्न हिस्सों में उनके नेटवर्क का पता लगाने के लिए आगे की जांच जारी है।

Continue Reading

बलिया स्पेशल

Ballia- बेलथरा रोड के सामाजिक कार्यकर्ता खालिद ज़हीर का निधन

Published

on

बेलथरा रोड डेस्क :  बलिया जिले के बेलथरा रोड से एक बुरी खबर सामने आई है।  नगर पंचायत के सामाजिक कार्यकर्ता रहे खालिद ज़हीर का वाराणसी में अचानक निधन हो गया। बताया जा रहा है कि गिरने की वजह से उनको सर में गहरी चोट लग गई जिसके बाद परिजन अस्पताल ले गए। इलाज के दौरान ही डाक्टरों ने उन्हे मृत्यु घोषित कर दिया।  सोमवार की रात करीब 12 बजे वह इस दुनिया को छोड़कर चले गए. उनकी उम्र लगभग 58  साल थी.

सामाजिक कार्यकर्ता होने के साथ साथ कई बार नगर पंचायत का चुनाव भी लड़ चुके थे । हर मुद्दे पर पर वो मुखर होकर अपनी बात रखते थे। सभी समुदाय में अच्छी पकड़ रखते थे। उनकी मौत की खबर से इलाके में शोक की लहर दौड़ पड़ी है।

Continue Reading

TRENDING STORIES

error: Content is protected !!