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बलिया स्पेशल

जानें कैसे होती है चकबंदी, कैसे और कहा कर सकते हैं शिकायत

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अगर आपके गांव में चकबंदी हो रही है, या होने वाली है तो ये खबर आपके काम की है। आमतौर पर किसान चकबंदी प्रक्रिया को काफी जटिल मानते हैं। गांव में चकबंदी कैसे होती है, आइये आपको इस बारे में पूरी जानकारी बताते हैं…

अक्सर ग्रामीण क्षेत्रों में परिवार के बढ़ने के साथ खेती की जमीनों में बंटवारा होता रहता है। ऐसे में एक समय के बाद पैतृक खेत, बाग आदि की भूमि छोटे-छोटे टुकड़ों में विभाजित होती रहती है। इसके कारण किसानों को छोटे जमीन के टुकड़ों पर खेती करने में मुश्किलों का सामना करना पड़ता है।

इतना ही नहीं, एक लम्बे समय के बाद गांवों में खेत की सीमाओं सम्बन्धी विवाद, सरकारी भूमि पर अतिक्रमण आदि की शिकायतें बढ़ जाती हैं, जिसके कारण सरकार चकबंदी कराती है। वर्तमान में उत्तर प्रदेश में अब तक प्रथम और दितीय चरण की चकबंदी में 1,27,225 गांवों की चकबंदी हो चुकी है और 4497 में चकबंदी चल रही है।

जोत चकबंदी अधिनियम की धारा 4(1), 4(2) के तहत गांवों में चकबंदी कराने के लिए राज्य सरकार विज्ञापन जारी कराती है। इसके बाद चकबंदी आयुक्त द्वारा धारा 4क (1), 4क (2) के तहत चकबंदी प्रक्रिया शुरू करने की अधिसूचना जारी करते है।

गांवों में चकबंदी की अधिसूचना जारी होने के बाद उस ग्राम के राजस्व न्यायालय मुकदमे अप्रभावी हो जाते हैं। इस दौरान चकबंदी बंदोबस्त अधिकारी की अनुमति के बिना कोई भी खातेदार (किसान) अपनी भूमि का उपयोग कृषि कार्य के अतिरिक्त नहीं कर सकता है।

चकबंदी के अधिसूचना जारी होने के बाद ग्राम में चकबंदी समिति का गठन भूमि प्रबंधन समिति के सदस्यों में से किया जाता है। यह समिति चकबंदी प्रक्रिया के प्रत्येक स्तर पर चकबंदी अधिकारियों को सहयोग और परामर्श देती हैं।

चकबंदी लेखपाल गांव में जाकर अधिनियम की धारा-7 के तहत भू-चित्र संशोधन, स्थल के अनुसार करता है और चकबंदी की धारा-8 के तहत पड़ताल कार्य करता है, जिसमें गाटो की भौतिक स्थिति, पेड़, कुओं, सिंचाई के साधन आदि का अकंन आकार पत्र-दो में करता है। इसके अलावा खतौनी में पाई गई अशुद्धियों का अंकन आकार-पत्र 4 में करता है। पड़ताल के बाद सहायक चकबंदी अधिकारी द्वारा चकबंदी समिति के परामर्श से भूमि का विनिमय अनुपात का निर्धारण गाटो की भौगोलिक स्थिति आदि के आधार पर किया जाता है।

अधिनियम की धारा-8 (क) के तहत सिद्धांतों का विवरण पत्र तैयार किया जाता है, जिसमें कटौती का प्रतिशत, सार्वजानिक उपयोग की भूमि का आरक्षण और चकबंदी की प्रक्रिया के दौरान अपनाए जाने वाले सिद्धांतों का उल्लेख किया जाता है। प्रारंभिक स्तर पर की गई समस्त कार्यवाहियों से खातेदार को अवगत करने के लिए अधिनियम की धारा-9 के तहत आकार-पत्र 5 का वितरण किया जाता है, जिसमें खातेदार अपने खाते की स्थिति और गाटो के क्षेत्रफल की अशुद्धियां जान जाता है।

आकार-पत्र 5 में दिए गए विवरणों और खातेदारों से प्राप्त आपत्तियों के आधार पर सहायक चकबंदी अधिकारी द्वारा अभिलेखों को शुद्ध करते हुए आदेश पारित किये जाते हैं, जो खातेदार इन आदेशों से सहमत नहीं होते हैं, वो बंदोबस्त अधिकारी चकबंदी के यहां अपील कर सकता है। धारा-9 के तहत वादों के निस्तारण के बाद धारा-10 के तहत पुनरीक्षित खतौनी बनाई जाती है, जिसमें खातेदारों की जोत सम्बन्धी, त्रुटियों को शुद्ध रूप में दर्शाया जाता है।

सहायक चकबंदी अधिकारी द्वारा चकबंदी समिति के परामर्श से चकबंदी योजना बनाई जाती है और धारा-20 के तहत आकार पत्र-23 भाग-1 का वितरण किया जाता है। चकबंदी बंदोबस्त अधिकारी द्वारा प्रस्तावित चकबंदी योजना को धारा-23 के तहत पुष्ट किया जाता है, जिसके बाद नई जोतों पर खातेदारों को कब्ज़ा दिलाया जाता है।

यदि कोई खातेदार इस प्रक्रिया से संतुष्ट नहीं है तो खातेदार धारा-48 के तहत उप संचालक चकबंदी के न्यायालय में निगरानी वाद दायर कर सकता है। अधिनियम की धारा-27 के तहत रिकॉर्ड (बंदोबस्त) तैयार किया जाता है, जिसमें आकार पत्र-41 और 45 बनाया जाता है। नए नक़्शे का निर्माण किया जाता है, जिसमें पुराने गाटो के स्थान पर नये गाटे बना दिए जाते हैं। इस सम्पूर्ण प्रक्रिया की हर स्तर पर गहन जांच की जाती है।

 

साभार- गाँव कनेक्शन

 

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20 दिन बाद भी फरार है बलिया का ये BJP का ब्लॉक प्रमुख ! गिरफ्तारी में देरी क्यों ? सड़को पर उतरे वकील

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प्रयागराज के मशहूर वकील अखिलेश शुक्ला की हत्या के बाद जिस तरह से मुख्य आरोपी अतुल प्रताप सिंह की गिरफ्तारी में देरी हो रही है, उसने पुलिस की कार्यशैली पर कई गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। क्या वजह है कि पुलिस अभी तक उसे पकड़ नहीं पाई है? कहीं यह बीजेपी से उसके जुड़े होने और राजनीतिक पहुंच की वजह से तो नहीं हो रहा?
रविवार को वकीलों ने म्योहाल चौराहे पर जबरदस्त प्रदर्शन किया और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का काफिला रोकने की मांग कर दी। उनका कहना था कि इतने दिनों बाद भी मुख्य आरोपी फरार है, तो पुलिस की कार्रवाई पर भरोसा कैसे किया जाए? पुलिस बार-बार आश्वासन दे रही है, लेकिन अब तक कोई ठोस नतीजा नहीं निकला।
कौन है अतुल प्रताप सिंह?
अतुल प्रताप सिंह बलिया जिले से बीजेपी का गड़वार ब्लॉक प्रमुख है। पहले से ही उस पर कई गंभीर मामले दर्ज है, फिर भी वह खुलेआम घूम रहा है।  पुलिस ने भले ही उस पर 5 हजार रुपये का इनाम घोषित किया हो, लेकिन सवाल है कि क्या यह इनाम भी सिर्फ औपचारिकता है? क्या राजनीतिक दबाव की वजह से पुलिस धीमी कार्रवाई कर रही है?
सड़क पर उतरे वकील !
रविवार को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का हेलीकॉप्टर जैसे ही पुलिस लाइन ग्राउंड पर उतरा, बड़ी संख्या में वकील महाराणा प्रताप चौराहे पर इकट्ठा हो गए। इसी रास्ते से सीएम का काफिला गुजरने वाला था। वकीलों ने ठान लिया था कि वे मुख्यमंत्री का काफिला रोककर अपनी नाराजगी जताएंगे और पत्रक सौंपेंगे। फिर क्या था ? अफसरों के माथे पर पसीना आ गया कि अगर काफिला रुका, तो सीधा यही मैसेज जाएगा कि यूपी में कानून व्यवस्था फेल हो चुकी है।
वकील इस बात से नाराज़ हैं कि अगर उनके कम्युनिटी के एक सीनियर मेंबर के साथ ऐसा हो सकता है, तो आम लोगों की सिक्योरिटी का क्या होगा? उन्होंने मुख्यमंत्री का काफिला रोकने की कोशिश तो की और अपनी मांगें सामने रखने के लिए प्रदर्शन किया। लेकिन यूपी पुलिस हमेशा की तरह प्रदर्शनकारियों को रोकने में कामयाब रही और एक बार फिर आश्वाशन देकर उन्हें वापस भेज दिया गया। हालात काबू से बाहर होते देख पुलिस कमिश्नर मौके पर पहुंचे। उन्होंने वकीलों को भरोसा दिलाया कि आरोपी की जल्द गिरफ्तारी होगी।
17 नवंबर को क्या हुआ था ?
आपको जानकारी के लिए बता दें कि, 17 नवंबर की रात सलोरी इलाके में हुए हमले ने प्रयागराज को हिला कर रख दिया था। अधिवक्ता अखिलेश शुक्ला पर लाठी-डंडों और असलहे से हमला हुआ। उन्हें इतना मारा गया कि वह अधमरे हो गए। तीन दिन तक वह जिंदगी और मौत से जूझते रहे और 20 नवंबर को लखनऊ में उनकी मौत हो गई। पुलिस ने आरोपी निखिल सिंह और तीन अन्य को जेल भेज दिया है। लेकिन अतुल प्रताप सिंह अभी तक फरार है।
इस मामले में बसंतपुर का दुर्गेश सिंह और रामपुर का प्रिंस सिंह पहले ही सरेंडर कर चुके हैं। लेकिन अतुल प्रताप सिंह और उसका ड्राइवर अजय यादव अभी तक पुलिस की पकड़ से बाहर हैं। पुलिस का कहना है कि वह छापेमारी कर रही है, लेकिन जब सबकुछ पता है—नाम, पता और पहचान—तो अब तक गिरफ्तारी क्यों नहीं हुई?
सवाल यह भी उठता है कि पुलिस की टीमें आखिर कहां छापेमारी कर रही हैं और अब तक क्या नतीजा निकला? मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सरकार यूपी की बेहतर कानून व्यवस्था की बात करती है, लेकिन ऐसे मामलों में ढिलाई उनके दावों को कमजोर कर रहा है।
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प्रयागराज वकील हत्याकांड: बलिया के इस ब्लॉक प्रमुख पर 5 हज़ार का इनाम, पुलिस तलाश में जुटीं

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प्रयागराज में चर्चित वकील अखिलेश शुक्ला हत्याकांड का मुख्य आरोपी बलिया निवासी अतुल प्रताप सिंह पर 5 हज़ार का इनाम घोषित किया गया है। आरोपी बीजेपी गड़वार ब्लॉक प्रमुख है और उसके ऊपर कई संगीन मुकदमे दर्ज हैं। इस मामले में बसंतपुर निवासी दुर्गेश सिंह और रामपुर निवासी प्रिंस सिंह पहले ही हाज़िर हो चुके हैं। इस मामले में ड्राइवर बसंतपुर निवासी अजय यादव अभी फरार चल रहा है।

जानकारी के मुताबिक, 17 नवंबर की रात सलोरी इलाके में विवाद के बाद अधिवक्ता को लाठी-डंडे, असलहे की बट और फायरिंग कर अधमरा कर दिया गया था। 20 नवंबर को अधिवक्ता की इलाज के दौरान लखनऊ में मौत हो गई थी। इस मामले में निखिल नामजद था जबकि चार अज्ञात आरोपी बनाए गए थे। मामले में 3 आरोपी निखिल सिंह, प्रिंस सिंह और मनोज सिंह पहले ही भेजे जा चुके हैं। पुलिस ने चौथे आरोपी को भी चिन्हित कर लिया था। वह छात्रनेता भी रह चुका है और मौजूदा समय में ठेकेदारी करता है।

अब पुलिस ने मुख्य आरोपी अतुल प्रताप सिंह पुत्र राणा प्रताप सिंह निवासी पचखोरा थाना गढ़वार जनपद बलिया और उसके चालक अजय यादव निवासी बसंतपुर सुखपुरा बलिया 5-5 हजार रुपये का इनाम घोषित किया है। साथ ही इन आरोपियों के खिलाफ गैर जमानती वारंट भी जारी किया गया है। इन दोनों की तलाश में पुलिस की तीन टीमें छापेमारी कर रही हैं।

प्रयागराज  की शिवकुटी पुलिस ने वकील हत्याकांड में चार आरोपियों निखिल कान्त सिंह निवासी नरियांव थाना जहाँगीरगंज जनपद अम्बेडकर नगर, प्रिन्स सिंह उर्फ रणविजय सिंह निवासी रामपुर उदयभान थाना कोतवाली जनपद बलिया, मनोज सिंह निवासी टीलापुर पोस्ट जमधरवा थाना रेवती जिला बलिया और दुर्गेश कुमार सिंह निवासी ग्राम बसन्तपुर थाना सुखपुरा जनपद बलिया को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया है।

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जानिए कौन हैं बलिया के नए एसपी विक्रांत वीर ?

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आईपीएस विक्रांत वीर बलिया

बलिया पुलिस अधीक्षक पर गाज गिरने के बाद योगी सरकार ने पीएसी की 32वीं वाहिनी में तैनात विक्रांत वीर को बलिया का नया पुलिस अधीक्षक बनाया है। बता दें कि बिहार-बलिया बॉर्डर के नरही थाना क्षेत्र में ट्रकों से अवैध वसूली में संलिप्त पुलिसकर्मियों के खिलाफ बलिया में बड़ी कार्रवाई हुई थी। एडीजी वाराणसी और डीआईजी आजमगढ़ की संयुक्त टीमों ने छापामार कर बलिया के थाना नरही अंतर्गत भरौली तिराहा पर अवैध वसूली के संगठित गिरोह का पर्दाफाश किया ।

मामले में पुलिसकर्मियों की संलिप्तता उजागर हुई है। तत्काल कार्रवाई करते हुए संबंधित थानाध्यक्ष नरही और चौकी प्रभारी कोरंटाडीह सहित तीन उपनिरीक्षक, तीन मुख्य आरक्षी, 10 आरक्षी और एक आरक्षी चालक को निलंबित किया गया है। वहीं देर रात बलिया एसपी को भी हटा कर विक्रांत वीर को बलिया की कमान सौंपी गई है। आईये जानते हैं

कौन हैं IPS विक्रांत वीर ?

विक्रांत वीर 2014 बैच के आईपीएस अधिकारी हैं। वह मूल रूप से बिहार में नालंदा के रहने वाले हैं। आईपीएस बनने से पहले वह मर्चेंट नेवी में थे। विक्रांत वीर के पिता बिहार में मलेरिया इंसपेक्टर के पद पर रह चुके हैं।

1997 में झारखंड के पलामू से इंटर की परीक्षा पास करने के बाद वह मुंबई की मरीन इंजीनियरिंग कॉलेज से बीएससी करने चले गए। साल 2011 में उनका चयन मर्चेंट नेवी में हो गया।

नौकरी करते हुए वह यूपीएससी की तैयारी भी कर रहे थे। आखिरकार साल 2014 में उनका सेलेक्शन आईपीएस के लिए हो गया। उनकी पहली तैनाती कानपुर में बतौर एएसपी हुई।

कानपुर से विक्रांत वीर फैजाबाद और बलिया के एसएसपी भी रहे। उसके बाद वह लखनऊ ग्रामीण के एसपी बने। बतौर एसपी हाथरस विक्रांत वीर का पहला जिला था।

हालांकि हाथरस में लड़की के साथ घटे जघन्य अपराध के बाद विक्रांत वीर को सस्पेंड कर दिया गया है। इस मामले ने पूरे देश में तूल तब पकड़ा जब पीड़िता की मौत के बाद पुलिसवालों ने उसकी लाश देर रात खुद ही जला दी।

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