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Election Analysis: घोसी में NDA की नैया डूबोने में ओपी राजभर ही प्रमुख किरदार!

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उत्तर प्रदेश. एक ऐसा राज्य जहां पूरे देश में सबसे ज्यादा लोकसभा सीटें हैं. कुल 80. ये वो राज्य है जिसने भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) को दिल्ली की गद्दी तक पहुंचाया. इसी यूपी को अपना किला बनाकर बीजेपी 2024 के आम चुनाव में 400 सीटें हासिल करने का सपना सजाए बैठी थी. लेकिन इस सपने को सबसे जोरदार धक्का इसी राज्य ने दिया.

सूबे का एक हिस्सा है पूर्वांचल. इसी क्षेत्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संसदीय क्षेत्र है. मोदी के ‘जादू’ से बीजेपी पूर्वांचल में क्लीन स्विप की तैयारी में थी. लेकिन यहां भी निराशा ही मिली. बलिया ख़बर के Election Analysis की इस ख़ास सीरीज में हम पूर्वांचल की एक-एक सीट पर बीजेपी की जीत-हार का विश्लेषण कर रहे हैं. पिछली रिपोर्ट में हमने ग़ाज़ीपुर का हाल बताया था. इस रिपोर्ट में बात होगी घोसी लोकसभा सीट की.

घोसी. हिंदू धर्म ग्रंथों में ज़िक्र मिलता है कि यहां कभी राजा घोस का शासन था. घोस नहुष के पुत्र थे. नहुष की कहानी इंद्र से भी जुड़ती है. इस कहानी को फिर कभी देखेंगे. फिलहाल घोसी का भूगोल समझ लेते हैं. मऊ जिले में ये इलाका पड़ता है. घोसी लोकसभा सीट के तहत 5 विधानसभा क्षेत्र हैं. इनमें एक बलिया का रसड़ा है. बाकि चार- मधुबन, घोसी, मुहम्मदाबाद-गोहना और मऊ सदर हैं.

2024 आम चुनाव में बीजेपी ने घोसी सीट अपने गठबंधन (NDA) के साथी ओपी राजभर के सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी को दे दी. ओपी राजभर ने इस सीट से अपने बेटे अरविंद राजभर को मैदान में उतार दिया. दूसरी ओर समाजवादी पार्टी (सपा) ने 2019 के ही उम्मीदवार को रिपीट किया. पार्टी ने राजीव राय को टिकट दिया. बहुजन समाज पार्टी (बसपा) ने बालकृष्ण चौहान को टिकट दिया था.

टिकट तय होने से पहले तक ये सीट सपा के लिए मुश्किल लग रही थी. लेकिन जैसे ही अरविंद राजभर और राजवी राय का नाम सामने आया, नतीजे साफ-साफ समझ आने लगा.

जाति समीकरण बिगड़ा

घोसी में करीब पांच लाख दलित वोटर्स हैं. साढ़े तीन लाख मुस्लिम. ढाई लाख यादव, सवा दो लाख चौहान और राजभर वोटर्स 2 लाख हैं. इसके अलावा वैश्य, मौर्य, ब्राह्मण, राजपूत, निषाद, भूमिहार पचास हजार से एक लाख तक हैं.

2 लाख राजभर मतदाताओं की वजह से ओपी राजभर और बीजेपी को इस सीट पर जीत का कॉन्फिडेंस था. साथ ही सपा के इंडिया गठबंधन की ओर से आरक्षण का मुद्दा उठाए जाने से ये उम्मीदें थीं कि आरक्षण के पक्ष में ना रहने वाले सामान्य वर्ग के वोटर्स बीजेपी के पक्ष में वोट करेंगे.

ओपी राजभर और अरविंद राजभर के बड़बोलेपन ने इस क्षेत्र में सवर्णों को पहले ही उनसे दूर कर दिया था. दूसरी ओर आरक्षण खत्म करने और संविधान बदल देने के प्रचार ने दलित मतदाताओं का वोट एकमुश्त सपा प्रत्याशी की ओर कर दिया. इस तरह अरविंद राजभर के पक्ष में सवर्ण तो पहले ही नहीं थे, दलित भी छिटक गए. ओपी राजभर खुद को जिस राजभर समुदाय का प्रतिनिधि बताते हैं, उसने भी इनसे मुंह मोड़ लिया.

स्थानीय बीजेपी कार्यकर्ताओं की नाराज़गी

यूपी विधानसभा चुनाव-2022 के दौरान राजभर की पार्टी सपा के साथ थी. और तब उन्होंने बीजेपी कार्यकर्ताओं को इस इलाके में खूब बुरा-भला सुनाया था. इससे बीजेपी कार्यकर्ताओं और नेताओं में अरविंद राजभर की उम्मीदवारी के खिलाफ गुस्सा था. इसी का नतीजा था कि यूपी के डिप्टी सीएम ब्रजेश पाठक ने एक सभा के दौरान अरविंद राजभर को बीजेपी कार्यकर्ताओं के सामने घुटने टेककर माफी मांगने को कहा. और अरविंद राजभर ने घुटने टेककर माफी मांगी भी.

बीजेपी के एक जिला स्तरीय नेता कहते हैं, “हम लोग चाहते थे कि यहां से पार्टी के ही किसी नेता को टिकट मिले. ओपी राजभर जब साथ थे तो गठबंधन के प्रत्याशी का प्रचार करते. ये बीजेपी के लिए ठीक होता. लेकिन गठबंधन के साथियों को संतुष्ट करने के चक्कर में यहां हमारी हार हो गई.”

अरविंद राजभर के एक सहयोगी नाम न छापने की शर्त पर कहते हैं, “देखिए सांसदी बहुत बड़ा चुनाव होता है. अरविंद जी को अभी लोग उस तरह से स्वीकार करने के लिए राजी नहीं हैं, ये तो दिख गया था.”

दूसरी ओर सपा के राजीव राय के लिए ये क्षेत्र जाना-पहचाना है. वो पिछले कई सालों से चुनाव की तैयारी में थे. अरविंद राजभर की तुलना में राजीव राय की पकड़ इलाके में मजबूत मानी जा रही थी, जैसा कि नतीजे भी बताते हैं.

सर्वे की अनदेखी

बीजेपी को एक ऐसी पार्टी के तौर पर देखा जाता है जो हर सीट पर अपनी पूरी ताकत झोंकती है. टिकट देने से पहले सर्वे होता है. उसी आधार पर उम्मीदवार तय किए जाते हैं. तो क्या ये सब घोसी सीट पर नहीं हुआ? पार्टी से जुड़े सूत्र बताते हैं, “सर्वे हुआ था और उसमें साफ़ तौर पर ये बात सामने आई थी कि अरविंद राजभर बुरी तरह से हार जाएंगे.”

चर्चा है कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पहले तो ओपी राजभर से गठबंधन के लिए ही राज़ी नहीं थे. फिर उनके बेटे को टिकट दिए जाने से भी सहमत नहीं थे. लेकिन अमित शाह ने योगी की बात की अनदेखी करते हुए गठबंधन किया और घोसी की सीट भी दे दी. नतीजा ये हुआ कि अरविंद राजभर को करीब डेढ़ लाख वोटों से हार मिली है.

सूत्र बताते हैं कि पार्टी राजेश सिंह दयाल को ये सीट देना चाहती थी. राजेश सिंह दयाल एक कारोबारी और सामाजिक कार्यकर्ता हैं. लेकिन राजभर दयाल के नाम पर तैयार नहीं हुए. वो घोसी के लिए अड़े रहे और अपने बेटे को लड़ाने की जिद्द करते रहे.

2014 में पहली बार बीजेपी को घोसी सीट पर जीत मिली थी. तब पार्टी ने हरिनारायण राजभर को टिकट दिया था. मोदी लहर में हरिनारायण राजभर जीत पाने में कामयाब हो गए थे. लेकिन 2019 में उन्हीं हरिनारायण को बसपा के अतुल राय के हाथों हार मिली थी. और अब 2024 में बीजेपी ने ये सीट ओपी राजभर की झोली में डालकर गंवा दी.

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बलिया में 2 छात्राओं की मिला 1 दिन के लिए जिला प्रोबेशन अधिकारी बनने का मौका

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बलिया में 2 छात्राओं को जिला प्रोबेशन अधिकारी बनने का मौका मिला। दोनों छात्राओं ने 1 दिन के लिए प्रोबेशन अधिकारी की सांकेतिक भूमिका का निर्वहन किया। मिशन शक्ति विशेष अभियान फेस-5 के अंतर्गत 1 दिन की जिला प्रोबेशन अधिकारी बालिकाओं और महिलाओं द्वारा सांकेतिक भूमिका निर्वहन कार्यक्रम का आयोजन किया गया।

जननायक चंद्रशेखर विश्वविद्यालय की B.A(LLB) की छात्रा साक्षी सिंह तथा गुलाब देवी इंटर कॉलेज की 12वीं की छात्रा खुशी वर्मा को जिला प्रोबेशन अधिकारी बनाया गया। केंद्र प्रशासक प्रिया सिंह ने मुख्यमंत्री कन्या सुमंगला योजना की बढ़ाई गई धनराशि, स्पॉन्सरशिप योजना तथा निराश्रित पेंशन के बारे में जानकारी दी।

इसके साथ ही वन स्टाप सेंटर तथा चाइल्ड हेल्पलाइन की कार्यप्रणाली एवं वहां प्राप्त होने वाली सेवाओं के बारे में विस्तार से जानकारी दी गई। 18 वर्ष से कम उम्र के बालक-बालिकाओं के साथ हों रही यौन हिंसा से बचने व उनकी शिकायत करने, अपनी बात खुलकर रखने के बारे में जानकारी दी गई।

सरकार द्वारा संचालित हेल्पलाइन नंबर 1098, 181, 1090 की जानकारी भी प्रदान की गई। दहेज प्रथा को समाप्त करने, बाल विवाह की कुप्रथा को रोकने ,बाल श्रम को रोकने के प्रति सभी को जागरूक किया गया। इस अवसर पर सहायक लेखाकार प्रदीप चौबे, जयप्रकाश यादव, नीलम शुक्ला, हर्षवर्धन, बैजंतीमाला और छात्राएं उपस्थित रही।

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बलिया के फेफना में अम्बेडकर प्रतिमा को अराजक तत्वों ने किया क्षतिग्रस्त, मौके पर पहुंची पुलिस

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बलिया के फेफना में कर्ची परीवा गांव में स्थापित बाबा साहेब भीमराव अम्बेडकर की प्रतिमा को अराजक तत्वों ने क्षतिग्रस्त कर दिया। इसकी जानकारी लगते ही बड़ी संख्या में आक्रोशित लोग घटना स्थल पर पहुंचे। मौके पर पुलिस पहुंची और किसी तरह लोगों को शांत कराया।

जानकारी के अनुसार, क्षेत्र के कर्ची परीवा में भीमराव अम्बेडकर की प्रतिमा को अराजक तत्वों द्वारा देर रात को क्षतिग्रस्त कर दिया गया। वहीं, प्रतिमा के क्षतिग्रस्त की सूचना पाकर सुबह से ही क्षेत्र के बसपा नेताओं का जमावड़ा लगा रहा। इसमें विधानसभा प्रभारी अरुण कुमार, संजय भारती, अनुज कुमार, श्रवण कुमार, नरेंद्र धूसिया, अशोक भारती, अजीत कुमार, सुनील भारती सहित सैकड़ो लोग मौजूद रहे और जमकर नारेबाजी की।

उधर, सूचना पाकर पहुंचे क्षेत्राधिकारी सदर श्यामकांत थानाध्यक्ष फेफना बृजमोहन सरोज सहित थानाध्यक्ष चितबड़ागांव प्रशांत चौधरी व थाना गड़वार दलबल के साथ पहुंच लोगो को समझाया गया। इसके बाद क्षेत्राधिकारी सदर ने दूसरी प्रतिमा लगवाने की बात पर ग्रामीणों ने बात मानी। इस संबंध में बृजमोहन सरोज ने बताया कि ग्रामीणों के तहरीर पर के अज्ञात के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर क्षतिग्रस्त मूर्ति की जगह दूसरी मूर्ति लगवाने और जांच के बाद दोषी के विरुद्ध कार्रवाई की जाएगी।

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बलिया पुलिस की मोबाइल रिकवरी सेल ने ढूंढ निकाले 70 मोबाइल, एसपी ने लोगों को वापस लौटाए

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बलिया पुलिस अधीक्षक विक्रांत वीर के निर्देशन और अपर पुलिस अधीक्षत उत्तरी और दक्षिणी के कुशल पर्यवेक्षण में गठित मोबाइल रिकवरी सेल ने बेहतरीन कार्य किया है। रिकवरी सेल ने कुल 70 मोबाइल बरामद किए। इसके बाद एसपी ने मोबाइल स्वामियों को बुलाकर उन्हें मोबाइल सुपुर्द किए।

जनपद बलिया सर्विलांस सेल द्वारा जब्त 70 मोबाइलों की कीमत लगभग 12 लाख 60 हजार रूपये है। अपने खोए हुए मोबाइल वापस पाकर वाहन स्वामियों के चेहरे पर खुशी लौट आई। मोबाइल फोन रिकवरी सेल में निरीक्षक विश्वनाथ यादव, मुख्य आरक्षी देवेन्द्र सरोज, मुख्य आरक्षी रोहित कुमार, आरक्षी विकास सिंह, आरक्षी विनोद रघुवंशी और आरक्षी अर्जुन यादव शामिल हैं, जिनके अथक प्रयास से मोबाइल फोन बरामद किए गए।

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