पूर्वांचल
डीजे बजाने पर बवा’ल की पूरी कहानी, देवरिया पुलि’स बोली- ह’त्या को सांप्रदा’यिक रूप न दें !
उत्तर प्रदेश के देवरिया जिले में जन्माष्टमी समारोहों के दौरान तेज डीजे बजाने को लेकर शुरू हुए विवाद ने शनिवार की रात सांप्रदा’यिक रंग पकड़ लिया। जिसके परिणामस्वरूप सचिन नाम के एक व्यक्ति की मौ’त हो गई । जिसके बाद उतेजि’त भीड़ ने एक धार्मि’क स्थल में तोड़फो’ड़ की और धार्मिक किताबों को भी नुकसान पहुचाया। साथ ही कुछ मुसलमानों की दुकानों को भी लुटा गया।
बता दें की सोमवार तक पुलिस ने छह लोगों को गिरफ्तार कर लिया है । जिन पर दंगा भड़काने का मामला दर्ज किया गया है । इस सांप्रदायिक तनाव में स्थानीय मीडिया और सोशल मीडिया के द्वारा भी इसे खूब ‘सांप्रदायिक रंग देने’ की कोशिश की गई । साथ ही पुलिस पर भी गैर-जिम्मेदाराना भूमिका निभाने का आरोप लगा है तो स्थानीय लोगों ने भी पुलिस की ही ‘लापरवाही’ को जिम्मेदार ठहराया है। ।बता दें की यह घटना जिला मुख्यालय से 28 किलोमीटर दूर बरहज के पटेल नगर में शनिवार आधी रात के बाद हुई जब लोग जन्माष्टमी मना रहे थे।
देवरिया के पुलिस अधीक्षक (एसपी) श्रीपति मिश्रा ने कहा, “कृष्ण जन्माष्टमी के मौके पर पटेल नगर में कुछ युवक तेज संगीत बजा रहे थे, तभी मुन्नालाल ने वहां आकर संगीत बंद करने के लिए कहा, जिसके बाद वहां मौजूद युवकों ने मुन्नालाल पर लाठियों से हमला कर दिया।”उन्होंने कहा, “जब उन्हें बचाने उनकी पत्नी संजू देवी के साथ उनके बेटे सुमित और सचिन आए, तो हमलावरों ने उन्हें भी पीट दिया।” जिसके बाद 23 साल के सुमित की अस्पताल ले जाते समय मौत हो गई।
वहीँ दूसरी तरफ न्यूज़ क्लीक वेबसाइट ने बरहज के थाना इंचार्ज शिवशंकर चौबे के हवाले से लिखा है- “पहले प्रद्युम्न गुप्ता और मन्नू जायसवाल के बीच झड़प हुई, फिर प्रद्युम्न ने अपने दोस्तों को बुलाया जिसमें हिंदू और मुसलमान दोनों थे। इसलिए सांप्रदायिक मामला नहीं है।” उन्होंने कहा कि पुलिस ने छह आरोपियों को सोमवार को गिरफ्तार किया, जिनमें प्रद्युम्न गुप्ता भी शामिल था।
आगे उन्होंने बताया “यह एक सांप्रदायिक घटना नहीं है बल्कि एक ग्रुप की लड़ाई है। लोगों को अफवाहों पर ध्यान नहीं देना चाहिए। छह आरोपियों को भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) 302, 147, 148, 323, 504, 506 और 34 आईपीसी के तहत गिरफ्तार किया गया है। जिनमें प्रद्युम्न गुप्ता, दुर्गेश गुप्ता, चेदि मद्धेशिया, इफ्तिखार अहमद, फैयाज और हैदर अली, “चौबे ने कहा,” गिरफ्तार किए गए अभियुक्तों का कोई आपराधिक रिकॉर्ड भी नहीं है।
स्थानीय लोगों ने पुलिस को ‘लापरवाही’ के लिए दोषी ठहराया– बलिया खबर ने भी कुछ स्थानीय निवासियों से उस रात की घटना जानने के लिए संपर्क किया। जिसमें बरहज के एक व्यापारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया स्थानीय मीडिया ने दो ग्रुपों की लड़ाई को हिंदू-मुस्लिम विवाद बना दिया हालाँकि ऐसा कोई मामला ही नहीं था । जिसके बाद ऐसी स्थिती यहाँ उत्तपन हुई है।
उन्होंने बताया “यह घटना शनिवार आधी रात को हुई थी जिसके बाद पुलिस मौके पर पहुंची और मामले को सुलझाया गया। सब कुछ शांतिपूर्ण था, लेकिन प्रद्युम्न पांच-छह दोस्तों (हिन्दू मुस्लिम दोनों) को ले आया और मन्नू के घर गए और जिसके बाद झगड़ा हुआ लेकिन लोगों ने अफवाह फैला दी कि मुसलमान ने एक हिन्दू को चाक़ू से मार दिया जो की सच नहीं है, ”उन्होंने कहा की पोस्टमार्टम रिपोर्ट से यह भी पता चलता है कि सिर में चोट लगने कारण सुमित की मौत हुई है ।
‘मस्जिद में तोड़फोड़, मुस्लिमों की लूटी दुकानें’– वहीँ पुलिस की लापरवाही को दोषी ठहराते हुए स्थानीय लोगों ने कहा: “यह घटना शनिवार की रात को हुई थी और रविवार दोपहर को पुलिस बल तैनात किया गया था। अगर जिला प्रशासन सुबह उठता तो मामला हाथ से नहीं निकलता। मुस्लिम दुकानें नहीं जलाई गई होतीं और मस्जिद को भी भीड़ द्वारा नुक्सान नहीं पहुचाया गया होता”
“अगले दिन (रविवार) इलाके में बंदी थी जिसका फायदा उठाकर मुसलमानों की दुकानों को निशाना बनाया गया था। मुसलमानों की चार दुकानें से लगभग 30 लाख रुपये की लूटी भी की गईं। उन्होंने कहा यहाँ एक सब्जी बाजार है जहां ज्यादातर दुकानें मुसलमानों द्वारा चलाई जाती हैं।
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Election Analysis: घोसी में NDA की नैया डूबोने में ओपी राजभर ही प्रमुख किरदार!
उत्तर प्रदेश. एक ऐसा राज्य जहां पूरे देश में सबसे ज्यादा लोकसभा सीटें हैं. कुल 80. ये वो राज्य है जिसने भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) को दिल्ली की गद्दी तक पहुंचाया. इसी यूपी को अपना किला बनाकर बीजेपी 2024 के आम चुनाव में 400 सीटें हासिल करने का सपना सजाए बैठी थी. लेकिन इस सपने को सबसे जोरदार धक्का इसी राज्य ने दिया.
सूबे का एक हिस्सा है पूर्वांचल. इसी क्षेत्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संसदीय क्षेत्र है. मोदी के ‘जादू’ से बीजेपी पूर्वांचल में क्लीन स्विप की तैयारी में थी. लेकिन यहां भी निराशा ही मिली. बलिया ख़बर के Election Analysis की इस ख़ास सीरीज में हम पूर्वांचल की एक-एक सीट पर बीजेपी की जीत-हार का विश्लेषण कर रहे हैं. पिछली रिपोर्ट में हमने ग़ाज़ीपुर का हाल बताया था. इस रिपोर्ट में बात होगी घोसी लोकसभा सीट की.
घोसी. हिंदू धर्म ग्रंथों में ज़िक्र मिलता है कि यहां कभी राजा घोस का शासन था. घोस नहुष के पुत्र थे. नहुष की कहानी इंद्र से भी जुड़ती है. इस कहानी को फिर कभी देखेंगे. फिलहाल घोसी का भूगोल समझ लेते हैं. मऊ जिले में ये इलाका पड़ता है. घोसी लोकसभा सीट के तहत 5 विधानसभा क्षेत्र हैं. इनमें एक बलिया का रसड़ा है. बाकि चार- मधुबन, घोसी, मुहम्मदाबाद-गोहना और मऊ सदर हैं.
2024 आम चुनाव में बीजेपी ने घोसी सीट अपने गठबंधन (NDA) के साथी ओपी राजभर के सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी को दे दी. ओपी राजभर ने इस सीट से अपने बेटे अरविंद राजभर को मैदान में उतार दिया. दूसरी ओर समाजवादी पार्टी (सपा) ने 2019 के ही उम्मीदवार को रिपीट किया. पार्टी ने राजीव राय को टिकट दिया. बहुजन समाज पार्टी (बसपा) ने बालकृष्ण चौहान को टिकट दिया था.
टिकट तय होने से पहले तक ये सीट सपा के लिए मुश्किल लग रही थी. लेकिन जैसे ही अरविंद राजभर और राजवी राय का नाम सामने आया, नतीजे साफ-साफ समझ आने लगा.
जाति समीकरण बिगड़ा
घोसी में करीब पांच लाख दलित वोटर्स हैं. साढ़े तीन लाख मुस्लिम. ढाई लाख यादव, सवा दो लाख चौहान और राजभर वोटर्स 2 लाख हैं. इसके अलावा वैश्य, मौर्य, ब्राह्मण, राजपूत, निषाद, भूमिहार पचास हजार से एक लाख तक हैं.
2 लाख राजभर मतदाताओं की वजह से ओपी राजभर और बीजेपी को इस सीट पर जीत का कॉन्फिडेंस था. साथ ही सपा के इंडिया गठबंधन की ओर से आरक्षण का मुद्दा उठाए जाने से ये उम्मीदें थीं कि आरक्षण के पक्ष में ना रहने वाले सामान्य वर्ग के वोटर्स बीजेपी के पक्ष में वोट करेंगे.
ओपी राजभर और अरविंद राजभर के बड़बोलेपन ने इस क्षेत्र में सवर्णों को पहले ही उनसे दूर कर दिया था. दूसरी ओर आरक्षण खत्म करने और संविधान बदल देने के प्रचार ने दलित मतदाताओं का वोट एकमुश्त सपा प्रत्याशी की ओर कर दिया. इस तरह अरविंद राजभर के पक्ष में सवर्ण तो पहले ही नहीं थे, दलित भी छिटक गए. ओपी राजभर खुद को जिस राजभर समुदाय का प्रतिनिधि बताते हैं, उसने भी इनसे मुंह मोड़ लिया.
स्थानीय बीजेपी कार्यकर्ताओं की नाराज़गी
यूपी विधानसभा चुनाव-2022 के दौरान राजभर की पार्टी सपा के साथ थी. और तब उन्होंने बीजेपी कार्यकर्ताओं को इस इलाके में खूब बुरा-भला सुनाया था. इससे बीजेपी कार्यकर्ताओं और नेताओं में अरविंद राजभर की उम्मीदवारी के खिलाफ गुस्सा था. इसी का नतीजा था कि यूपी के डिप्टी सीएम ब्रजेश पाठक ने एक सभा के दौरान अरविंद राजभर को बीजेपी कार्यकर्ताओं के सामने घुटने टेककर माफी मांगने को कहा. और अरविंद राजभर ने घुटने टेककर माफी मांगी भी.
बीजेपी के एक जिला स्तरीय नेता कहते हैं, “हम लोग चाहते थे कि यहां से पार्टी के ही किसी नेता को टिकट मिले. ओपी राजभर जब साथ थे तो गठबंधन के प्रत्याशी का प्रचार करते. ये बीजेपी के लिए ठीक होता. लेकिन गठबंधन के साथियों को संतुष्ट करने के चक्कर में यहां हमारी हार हो गई.”
अरविंद राजभर के एक सहयोगी नाम न छापने की शर्त पर कहते हैं, “देखिए सांसदी बहुत बड़ा चुनाव होता है. अरविंद जी को अभी लोग उस तरह से स्वीकार करने के लिए राजी नहीं हैं, ये तो दिख गया था.”
दूसरी ओर सपा के राजीव राय के लिए ये क्षेत्र जाना-पहचाना है. वो पिछले कई सालों से चुनाव की तैयारी में थे. अरविंद राजभर की तुलना में राजीव राय की पकड़ इलाके में मजबूत मानी जा रही थी, जैसा कि नतीजे भी बताते हैं.
सर्वे की अनदेखी
बीजेपी को एक ऐसी पार्टी के तौर पर देखा जाता है जो हर सीट पर अपनी पूरी ताकत झोंकती है. टिकट देने से पहले सर्वे होता है. उसी आधार पर उम्मीदवार तय किए जाते हैं. तो क्या ये सब घोसी सीट पर नहीं हुआ? पार्टी से जुड़े सूत्र बताते हैं, “सर्वे हुआ था और उसमें साफ़ तौर पर ये बात सामने आई थी कि अरविंद राजभर बुरी तरह से हार जाएंगे.”
चर्चा है कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पहले तो ओपी राजभर से गठबंधन के लिए ही राज़ी नहीं थे. फिर उनके बेटे को टिकट दिए जाने से भी सहमत नहीं थे. लेकिन अमित शाह ने योगी की बात की अनदेखी करते हुए गठबंधन किया और घोसी की सीट भी दे दी. नतीजा ये हुआ कि अरविंद राजभर को करीब डेढ़ लाख वोटों से हार मिली है.
सूत्र बताते हैं कि पार्टी राजेश सिंह दयाल को ये सीट देना चाहती थी. राजेश सिंह दयाल एक कारोबारी और सामाजिक कार्यकर्ता हैं. लेकिन राजभर दयाल के नाम पर तैयार नहीं हुए. वो घोसी के लिए अड़े रहे और अपने बेटे को लड़ाने की जिद्द करते रहे.
2014 में पहली बार बीजेपी को घोसी सीट पर जीत मिली थी. तब पार्टी ने हरिनारायण राजभर को टिकट दिया था. मोदी लहर में हरिनारायण राजभर जीत पाने में कामयाब हो गए थे. लेकिन 2019 में उन्हीं हरिनारायण को बसपा के अतुल राय के हाथों हार मिली थी. और अब 2024 में बीजेपी ने ये सीट ओपी राजभर की झोली में डालकर गंवा दी.
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Election Analysis: गाज़ीपुर में क्यों जीत नहीं पाई बीजेपी, मनोज सिन्हा की जिद्द पड़ी भारी!
“उत्तर प्रदेश ने कमाल कर दिया.” कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष और रायबरेली से सांसद राहुल गांधी ने लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद हुए प्रेस कॉन्फ्रेंस में ये बात कही. प्रदेश की 80 लोकसभा सीटों में से भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के खाते में महज 33 सीटें आईं. समाजवादी पार्टी (सपा) ने 37 और कांग्रेस ने 6 सीटों पर जीत दर्ज की. वैसे तो बीजेपी को राज्य के हर क्षेत्र में सीटें गंवानी पड़ीं लेकिन सबसे ज्यादा चौंकाने वाले नतीजे पूर्वांचल ने दिए.
पूर्वांचल की एक अहम लोकसभा सीट है गाज़ीपुर. यहां सपा प्रत्याशी अफजाल अंसारी ने बीजेपी के पारसनाथ राय को कर 1 लाख 24 हजार वोटों से शिकस्त दी है. अफजाल इस सीट से 2019 में भी सांसद बने थे. लेकिन उससे पहले यानी 2014 में बीजेपी के मनोज सिन्हा की जीत हुई थी. मनोज सिन्हा फिलहाल जम्मू-कश्मीर के उप-राज्यपाल हैं.
गाज़ीपुर में सिन्हा की मजबूत पकड़ मानी जाती है. लेकिन दूसरी ओर इस क्षेत्र में अंसारी परिवार का भी वर्चस्व रहा है. मनोज सिन्हा की पकड़ और मन मुताबिक़ टिकट बंटवारे के बावजूद बीजेपी को हार का सामना करना पड़ा. इस हार की कई वजहें हैं. बलिया ख़बर ने बीजेपी से जुड़े सूत्रों से इसे लेकर बातचीत की. तो चलिए एक-एक कर हार की वजहों पर नज़र डालते हैं.
निजी स्वार्थ पड़ा भारी
मनोज सिन्हा भले जम्मू-कश्मीर के उप-राज्यपाल बन चुके हैं लेकिन गाज़ीपुर से उनका मोह नहीं छूटा है. इलाके के बीजेपी नेता बातचीत में कहते हैं कि सिन्हा इस सीट पर अपनी पकड़ कमज़ोर नहीं होने देना चाहते हैं. इसलिए यहां पार्टी वही फैसले लेती है जो सिन्हा चाहते हैं. लोकसभा चुनाव से पहले ये चर्चाएं थीं कि वे खुद इस बार चुनाव लड़ना चाहते थे. लेकिन बीजेपी आलाकमान इस बात पर राज़ी नहीं था.
बीजेपी के सबसे बड़े नेता नरेंद्र मोदी और अमित शाह से मनोज सिन्हा की नजदीकी जग ज़ाहिर है. मोदी-शाह सिन्हा को कश्मीर से बुलाने के पक्ष में नहीं थे. पार्टी को लगता है कि कश्मीर के मुद्दे को संभालने के लिए वे सबसे माकूल हैं. ऐसे में उन्हें गाज़ीपुर के चुनाव से दूर रखा गया.
मनोज सिन्हा के करीबी लोग नाम न छापने की शर्त पर कहते हैं, “मनोज जी को जब खुद टिकट नहीं मिला तो अपने करीबी के फिल्डिंग सेट कर दिया. पहले तो वो अपने बेटे को ही टिकट दिलाना चाहते थे. लेकिन पार्टी के आंतरिक सर्वे में ये बात निकलकर आई कि उनके बेटे को टिकट देने पर हार तय है. जब बेटे का भी पत्ता कट गया तो सिन्हा साहब ने राय जी (पारसनाथ राय) को टिकट दिलवा दिया.”
पारसनाथ राय शिक्षाविद् हैं और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) से जुड़े रहे हैं. आरएसएस का बैकग्राउंड और फिर मनोज सिन्हा का करीबी होना राय के पक्ष में था. ऐसे में पार्टी ने उन पर भरोसा जताया और टिकट दे दिया.
कई थे दावेदार
गाज़ीपुर से लोकसभा चुनाव लड़ने के बीजेपी में कई दावेदार थे. पहला नाम माफिया बृजेश सिंह का था. बृजेश सिंह और मुख्तार अंसारी की अदावत के किस्से पूर्वांचल की हर चौक-चौराहे पर पसरी हुई है. ऐसे में मुख्तार अंसारी के भाई अफजाल अंसारी के सामने उनकी दावेदारी की कयासें लग रही थीं.
मुख्तार अंसारी को बीजेपी विधायक कृष्णानंद राय की हत्या के आरोप में सज़ा मिली थी. उन्हीं कृष्णानंद राय के बेटे पीयूष राय को मैदान में उतारकर इमोशनल कार्ड चलने की चर्चाएं भी थीं. टिकट के तीसरे दावेदार बलिया की फेफना विधानसभा सीट से विधायक और योगी आदित्यनाथ सरकार के राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) उपेंद्र तिवारी थे. चौथा नाम जिसे दावेदार के तौर पर देखा जा रहा था वो चंदौली की सैयदराजा विधानसभा सीट से बीजेपी विधायक सुशील सिंह का था. सुशील सिंह माफिया बृजेश सिंह के भतीजे भी हैं.
पार्टी के कई नेता बलिया के पूर्व सांसद वीरेंद्र सिंह मस्त और राधा मोहन सिंह की दावेदारी पर भी हामी भरते हैं. इनके पक्ष में अनुभवी नेता होने और जमीन से जुड़े होने का तर्क दिया जाता है.
दावेदारों के बरक्स पारसनाथ राय कमज़ोर उम्मीदवार ही थे. वजह? पारसनाथ राय ने इससे पहले कभी कोई चुनाव नहीं लड़ा था. सीटिंग सांसद, जातिगत समीकरण और मुख्तार फैक्टर के मजबूत होने के बावजूद एक ऐसे उम्मीदवार को मैदान में उतारना जिसने कभी चुनाव नहीं लड़ा था, बीजेपी के लिए नुक्सानदेह साबित हुआ. पारसनाथ राय सामाजिक तौर पर सक्रिय जरूर रहे हैं. लेकिन सियासी तौर पर ज़मीन पर उनकी पकड़ बेहद कमजोर थी.
गाज़ीपुर में करीब दो दशकों से बीजेपी से जुड़े एक कार्यकर्ता बताते हैं, “देखिए बीजेपी ऐसे ही किसी को टिकट नहीं दे देती है. बाकायदा सर्वे होता है हर सीट और हर कैंडिडेट पर. पारसनाथ जी के बारे में भी सर्वे हुआ था. और सर्वे में ये बात सामने आई कि वो हार जाएंगे. उनके बजाए किसी पुराने नेता को उतारने की बातें सामने आई थीं.”
मुख्तार अंसारी की बांदा जेल में मौत के बाद गाज़ीपुर में उनके भाई के लिए सिम्पैथी भी थी. अफजाल अंसारी की पकड़, मुख्तार अंसारी के नाम पर सिम्पैथी और मनोज सिन्हा की जिद्द की बदौलत एक कमजोर उम्मीदवार की वजह से बीजेपी ये सीट हार गई और सपा की जीत हुई.
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बलिया के मुफ़्त स्वास्थ्य कैंप में उमड़ा जनसैलाब, ‘दयाल फाउंडेशन’ को लोगों ने बताया मसीहा!
बलिया के बांसडीह (Bansdih) में शनिवार को राजेश सिंह दयाल फाउंडेशन (Rajesh Singh Dayal Foundation) की ओर से दो दिवसीय मेडिकल कैंप का आयोजन किया गया। मेडिकल कैंप के पहले दिन ही रिकार्ड तोड़ भीड़ उमड़ पड़ी। बांसडीह इन्टर कालेज (Bansdih Inter College) में लगे कैंप में मरीजों को देखने के लिए लखनऊ (Lucknow) से आयी चिकित्सकों की टीम द्वारा नि:शुल्क दवाइयां भी दी गयी। पहले दिन यहाँ तकरीबन 3500 लोगों का मुफ़्त इलाज किया गया।
स्वास्थ्य शिविर (Medical Camp) में पहुंचे मरीजों को कोई परेशानी न हो इसके लिए एडमिशन कांउटर,चिकित्सक कक्ष,जांच कक्ष से लेकर दवा वितरण कक्ष तक पर वालेंटियर तैनात थे। जो मरीजों का हर सम्भव सहायता के लिए तत्पर थे।शिविर के आयोजक तथा समाजसेवी राजेश सिंह दयाल स्वयं बराबर चक्रमण करते हुए अपनी नज़र रखे हुए थे। वे स्वयं भी मरीजों की सहायता कर रहे थे।
शिविर में ईसीजी (EGC),ब्लड टेस्ट (Blood Test) आदि की भी व्यवस्था थी। चिकित्सकों के परामर्श पर मरीजों का न केवल विभिन्न टेस्ट किया गया बल्कि नि:शुल्क दवा ( Free Medicine)भी वितरित किया गया।
मेडिकल कैंप (Medical Camp) में इलाज कराने पहुंचे मरीजों ने की सराहना
मेडिकल कैंप में इलाज कराने पहुंचे पुष्पा देवी, मोहम्मद शब्बीर,कुमारी रूबी,कुमारी जानकी,राधिका देवी,रमेश राम आदि ने कहा कि
“स्वास्थ्य शिविर से क्षेत्रवासियों को लाभ मिल रहा है। यहां जो सुविधा उपलब्ध है इससे पहले कभी नहीं हुई । चिकित्सकों का उचित परामर्श,टेस्ट तथा नि:शुल्क दवाएं मिल रही है। ऐसा शिविर अगर क्षेत्र में हमेशा लगता रहे तो निश्चित ही लोगों की स्वास्थ्य समस्याओं से निजात मिलने में सहायक होगा। यह कार्य बेहद सराहनीय है और इस तरह के कार्य हमेशा होना चाहिए। यह इलाका पिछड़ा है और इस शिविर से यहां के लोगों को काफी लोगों को इससे फ़ायदा मिल रहा है। दयाल फाउंडेशन यहाँ के लोगों के लिए एक तरह से मसीहा का काम कर रहा है”
स्वास्थ्य शिविर के आयोजक समाजसेवी राजेश सिंह दयाल (Rajesh Singh Dayal) ने कहा कि दूर दराज के क्षेत्रों में आज भी स्वास्थ्य की जरूरत है।आज भी स्वास्थ्य लोगों के लिए समस्या बनी हुई है। ऐसे लोगों को स्वास्थ्य की सुविधा हो जाए इसके लिए हम लोग काम कर रहे हैं। कहा कि इस प्रकार का स्वास्थ्य शिविर हमेशा जारी रहेगा।कहा कि लगातार काम करना है बच्चों की शिक्षा पर,कुपोषण पर कार्य करना है।
उन्होंने कहा कि अभी बहुत काम बाकी है। राजेश सिंह (Rajesh Singh) ने कहा कि अगर यहाँ डॉक्टर मरीजों को चिकित्सक रेफर करते हैं तो उनका इलाज लखनऊ ले जा कर कराया जा रहा है। उन्होंने कहा कि 2014 से यह कार्य लगातार जारी है।
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