मनोरंजन
फिल्म समीक्षा- राजनीतिक फिल्मों की परंपरा में बेहतरीन पड़ाव है ‘उन्माद’
एक सप्ताह के अंतराल में पहले फिल्म ‘मुल्क’ और उसके बाद ‘उन्माद’ को देखना एक तरह से बहुत सहज करने जैसा है कि भारतीय सिनेमा के मेलोड्रामाई किरदार से हटकर ज़मीनी और ज़रूरी मुद्दे फिल्मों के विषय बन रहे हैं. ‘मुल्क’ का कैनवस बहुत बड़ा है, क्योंकि उसमें निर्देशक से लेकर स्टारकास्ट तक सब मंझे हुए हैं. यह फिल्म ढेरों सवाल उठाती है, और देश, देशभक्ति, देशद्रोह, देशप् रेम और धर्म को लेकर मैसेज देती है. मुल्क देखते हुए देश से मुहब्बत और इंसानियत पर एक सकारात्मक नजरिया बनता है. लेकिन यहीं परफिल्म ‘उन्माद’ में सबकुछ नया सा लगता है. मसलन, बतौर निर्देशक शाहिद कबीर की यह पहली फिल्म है और इसके तकरीबन सारे कलाकार थियेटर से हैं. शाहिद कबीर खुद एक रंगकर्मी हैं. इसलिए फिल्म की सिनेमाटोग्राफी, एडिटिंग, पट कथा, संवाद और कुछ–कुछ निर्देशन भी थोड़ा औसत तो हैं, लेकिन मैसेज देने के पैमाने पर यह एक ज़रूरी फिल्म बन जाती है. ज़ाहिर है, इस वक्त मॉब लिंचिंग हमारे देश के लिए एक गंभीर समस्या है. इससे देश का लोकतांत्रिक ताना–बाना टूटता है और सांप्रदायिक सौहार्द में कमी आती है. इस गंभीर विषय को शाहिद ने ‘उन्माद’ के केंद्र में रखने का साहस किया है, इसलिए उन्हें बधाई दी जानी चाहिए. इसलिए भी कि राजनीतिक फिल्में बनाने की रुकी हुई परंपरा को वे आगे बढ़ाने का काम किये हैं.
फिल्म ‘मुल्क’ में एक बेहतरीन ज़रूरी कहानी के साथ जहां थोड़ा सा मेलोड्रामाई तत्व मौजूद हैं जिससे यह बॉलीवुड की मुख्यधारा की फिल्म लगती है. लेकिन वहीं ‘उन्माद’ को देखते हुए लगता है कि सिनेमा के परदे पर हम कोई थियेटर प्ले देख रहे हैं. ‘मुल्क’ की कहानी की जान एक लाईन है– ‘सभी मुसलमान आतंकवादी नहीं होते’. इस एक लाईन पर चलते हुए निर्देशक अनुभव सिन्हा ने हिंदू–मुसलमान दोनों के बीच एक संतुलन को बनाये रखा है, जो काबिले तारीफ है. लेकिन ‘उन्माद’ में ‘मुल्क’ जैसी डायलॉगबाजी नहीं है, न ही लाउड संवाद हैं और मॉब लिंचिंग पर फिल्म होने के बावजूद हिंसक भी नहीं है. ‘उन्माद’ एक साधारण फिल्म होते हुए भी अपने भीतर गहरे राजनीतिक अर्थ रखती है और सबको बराबरी का दर्जा देनेवाले भारतीय लोकतंत्र में एक गरीब इंसान की मुश्किलों को बिना किसी ड्रामाई अंदाज के दिखाती है. इसलिए इस फिल्म को देखा जाना चाहिए और इसकी पहुंच भी दूर तक होनी चाहिए, क्योंकि इसमें भारतीय समाज का सौहार्द भी नज़र आता है.
देशभर में गाय को लेकर ‘उन्मादी भीड़ द्वारा बीते कुछ वर्षों में लगभग 33 हत्याएं हो चुकी हैं. मॉब लिंचिंग को लेकर सुप्रीम कोर्ट भी उन्मादी भीड़ के खतरे पर अपनी चिंता जता चुका है और उसने केंद और राज्य सरकारों को इन घटनाओं को रोकने के उपाय करने को कहा है और संसद में इसके खिलाफ कठोर कानून बनाने का आदेश दिया है. मुख्यधारा के सिनेमाई परदे पर ऐसे विषयों को उठाना साहसिक तो है ही, साथ ही सिनेमा के अर्थशास्त्र के साथ कदमताल करने का रिस्क भी है. यह रिस्क अगर शाहिद ने लिया है, तो वे हंसल मेहता सरीखे फिल्मकार के साथ खड़े होने के लिए तैयार हैं.
भारतीय समाज में फैले राजनीतिक और धार्मिक उन्माद में आखिर फंसता कौन है? इस सवाल का जवाब ‘उन्माद’ देती है. ‘उन्माद’ की कहानी गाय पर हो रही भ्रष्ट राजनीति और उसके इर्दगिर्द चलती सामाजिक प्रष्ठभूमि और धर्मभीरू समाज की ढपोरशंखी सोच पर आधारित है. हालांकि इस फिल्म में एक सकारात्मक पक्ष प्रेम ही है. यह फिल्म बताती है कि एक प्रेम ही है, जो बेवजह के जुनून को उन्माद बनने से रोक सकता है. निर्देशक शाहिद ने फिल्म स्क्रीनिंग में एक बात कही थी कि लोग धर्म से कहीं ज़्यादा किसी को बेवजह उन्मादी जुनून में मार दे रहे हैं. यह आज के समय का वह सच है, और इसी सच को हम ‘उन्माद’ में देख पाते हैं.
‘उन्माद’ की कहानी की पृष्ठभूमि पश्चिमी उत्तर प्रदेश का गांव है, जहां के एक मुस्लिम कसाई कल्लू की गरीबी के गिर्द की वह घटना है जब वह अपने दोस्त शंभू से मदद मांगता है.कल्लू का किरदार निभानेवाले इम्तियाज का अभिनय बहुत शानदार है. चूंकि बीफ बैन के बाद कल्लू बेरोजगार हो जाता है, इसलिए उसे रुपये की सख्त जरूरत होती है. शंभू उसे अपना बैल देकर कहता है कि वह उसे बेचकर कुछ पैसे पा सकता है, ताकि रोजी–रोजगार का कोई जरिया बन सके. जब कल्लू बैल लेकर बेचने के लिए जा रहा होता है, तभी उसे कुछ हिंदू लोग पकड़कर मारने लगते हैं और इल्जाम लगाते हैं कि कल्लू गाय काटने जा रहा था. शंकर नामक किरदार बैल को गाय बनाकर राजनीति करता है और इसी धार्मिक ध्रुवीकरण के दम पर विधायक बनना चाहता है. इसी ऐतबार से ‘उन्माद’ एक राजनीतिक फिल्म बन जाती है. लेकिन, कल्लू की मदद भी एक हिंदू पत्रकार ही करता है. वह पत्रकार एक मुस्लिम लड़की से प्यार करता है. यह इस फिल्म का सकारात्मक पक्ष है, क्योंकि इसे ‘लव जिहाद’ जैसे मसले से अछूता रखने में शाहिद कामयाब रहे हैं.
वसीम अकरम
(लेखक प्रभात ख़बर के जाने माने पत्रकार हैं)
बलिया
बलिया में गायक पवन सिंह पर FIR की मांग, जानिए वजह
बलिया। हिन्दू समाज पार्टी के कार्यकर्ताओँ ने अभिनेता पवन सिंह पर मुकदमा दर्ज करने के साथ ही बाढ़ से किसानों को हुए नुकसान का जल्द मुआवजा देने की मांग की। इतना ही नहीं कार्यकर्ताओँ ने मांग पूरी न होने पर अनशन पर बैठने की चेतावनी भी दी। अपनी मांगों को लेकर कार्यकर्ताओं ने एसडीएम को ज्ञापन सौंपा। और जल्द ही मांगों को पूरा करने की मांग की। हिन्दू समाज पार्टी के कार्यकर्ताओं ने एसडीएम को ज्ञापन देकर भोजपुरी गायक और अभिनेता पवन सिंह पर मुकदमा दर्ज करने की मांग की। पवन सिंह पर आस्था को अपमानित करने का आरोप लगाया है।
कार्यकर्ताओँ का कहना है कि भगवान शिव पर गाया उनका गीत शर्मसार करने वाला है। यह हिन्दू धर्मावलम्बियों का अपमान है। कार्यकर्ताओं ने बाढ़ से किसानों को हुए नुकसान की क्षतिपूर्ति करने की मांग भी की। पुष्कर राय मोनू ने कहा कि 17 अगस्त तक मांगे पूरी नहीं होने पर बेमियादी अनशन शुरू किया जाएगा। इस दौरान रितेश वर्मा, आशीष मिश्र, राजेश राय, गोल्डन राय, शैलेश सिंह, भागवत दुबे, राहुल गुप्ता, दीपक वर्मा, अनूप प्रसाद, विद्या सागर, बड़े लाल यादव, आशुतोष पटेल, सुनील पांडे, दीपक गुप्त, भोला पांडे, राहुल कन्नौजिया, सनोज कन्नौजिया आदि थे।
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बलिया के डॉ. सागर ने लिखा रैप सांग ‘बंबई में का बा’, देश भर में मचा रहा धूम
बलिया डेस्क : बलिया में जन्में डॉ. सागर का नया भोजपुरी सांग ‘बंबई में का बा’ इस वक्त काफी चर्चा में है। ये सांग इसलिए भी चर्चा का विषय है क्योंकि पहली बार ‘रैप’ भोजपुरी जबान में गाया गया है और इसमें अनुभव सिन्हा व मनोज बाजपेयी ने 26 साल बाद साथ काम किया है। ये सांग अनुभव सिन्हा के निर्देशन में फिल्माया गया है।
वहीं एक्टर मनोज बाजपेयी ने इसपर परफार्म करते हुए इसे खुद गाया भी है। इसका प्रोडक्शन टी-सीरीज़ और बनारस बीट के बैनर तले किया गया है। ऐसा पहली बार हो रहा है कि किसी भोजपुरी सांग के लिए इतने नामी-गिरामी कलाकार एक साथ काम कर रहे हैं। मनोज बाजपेई का कहना है कि ये सांग लोगों की जिंदगी को छूता है। उन्होंने कहा कि इसे पढ़कर ऐसा लगा जैसे उनकी ही बात हो रही है।
ये रैप उन प्रवासियों की ज़िंदगी को लेकर लिखा गया है, जो मुंबई में रह रहे हैं। इस पूरे रैप में बार-बार ‘बंबई में का बा?’ यानी मुंबई में क्या है, पूछा गया है। डॉ. सागर ने अपने इस रैप के ज़रिए ये बताने की कोशिश की है कि मुंबई में रहने वाले प्रवासी अपने गांव को छोड़कर इसलिए आए हैं ताकि वह दो वक्त की रोटी का इंतेज़ाम कर सकें। इसके सिवा उनके लिए मुंबई में कुछ नहीं रखा।
उन्होंने रैप में लॉकडाउन के पलायन की पीड़ा को भी बेहद खूबसूरत अंदाज़ में पेश किया है। सवालों के ज़रिए उन्होंने पलायन के गुस्से को व्यक्त करने की कोशिश की है। रैप में डॉ. सागर ने बेहद सटीक शब्दों में ये बताने की कोशिश की है कि यूपी और बिहार के लोग मुंबई में क्या करते हैं।
कौन हैं डॉ. सागर? बलिया के नगरा से ताल्लुक रखने वाले डॉ. सागर ने अपनी पी.एचडी जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय से की है। डॉ. सागर को शुरू से ही शायरी में दिलचस्पी रही है, इसी दिलचस्पी के कारण वह शायर बने और अपने हुनर को फिल्मों में आजमाया और उन्हें कामयाबी भी मिली। ‘लव यू सोनियो’ और ‘मैं और चार्ल्स’ फिल्म के उनके गाने काफी सुने गए। दिलचस्प बात ये है कि भोजपुरी फिल्मों में गीत लिखने वाले डॉ. सागर बॉलीवुड में भी अपनी कलम का लोहा मनवा चुके हैं।
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VIDEO – कभी मोदी तो कभी योगी बन जाते हैं निलेश, बलिया को मिला नया आर्टिस्ट
बिल्थरा रोड डेस्क : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हो या कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ , सदाबहार राजनेता बिहार के भूतपूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव से लेकर सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव , बॉलीवुड तथा भोजपुरी फिल्मों के सुपरस्टार की हूबहू आवाज निकालते हैं निलेश मद्धेशिया दीपू । दीपू की आवाज का नकल करने के अंदाज को सोशल नेटवर्किंग साइट से लेकर यूट्यूब व विभिन्न चैनलों पर खूब पसंद किया जा रहा है ।
होनहार बिरवान के होत न चिकने पात की कहावत को चरितार्थ करते जिले के बिल्थरा रोड नगर पंंचायत के निवासी नीलेश दीपू देश के जाने माने राजनेताओं, फिल्म हस्तियों, विभिन्न गाड़ियों, कार्टूनों और जानवरों की आवाज निकाल आयेदिन शोहरत बटोर रहे हैं । 26 वर्ष के वय में दीपू के उपनाम से चर्चित नीलेश आवाज निकालने की अपनी अदा से न सिर्फ अपनी एक अलग पहचान बनाते नजर आ रहे हैं ,बल्कि हर उम्र के लोगों के चहेते बन गए हैं । जिले के विभिन्न क्षेत्रों से लेकर पड़ोसी जनपदों में दीपू किसी न किसी कार्यक्रम की शोभा बढ़ाते नजर आते हैं ।
हर जगह बढ़ रही लोकप्रियेता
इनकी लोकप्रियता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि इनकी मिमिक्री को सोशल नेटवर्किंग साइट फेसबुक, व्हाट्सएप व यूट्यूब पर काफी पसंद किया जा रहा है । आवाज के बेताज बादशाह नीलेश दीपू के कंठ में ऐसी कला है , जो किसी को भी हैरान कर देती है । तकरीबन 9 साल की उम्र में ही दीपू ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा के दौरान अपने शिक्षकों व दोस्तों के आवाज की नकल करना शुरू कर दिया । वह न्यूजट्रैक से बातचीत में कहते हैं कि पहले तो उनके सहपाठी उसकी इस अदा पर हँसते थे लेकिन समय के साथ उनकी मिमिक्री को पसंद किया जाने लगा। वह बताते हैं कि उनके गुरुजनों व दोस्तों ने उनका काफी उत्साहवर्धन किया ।
एक मध्यमवर्गीय परिवार से जुड़े दीपू के बड़े भाई अवधेश केंद्रीय विद्यालय में शिक्षक हैं तथा मझले भाई कमलेश विभिन्न प्रतियोगिताओं की तैयारी कर रहे हैं । वह बताते हैं कि प्रारम्भिक शिक्षा के दौरान मिले उत्साहवर्धन की ही देन है कि उन्होंने लगातार जीतोड़ कोशिश किया । यह जुनून उनको सोने नही देता था । आवाज की नकल निकालने के जज्बे ने दीपू को आज प्रसिद्धि के मुकाम पर पहुँचा दिया है । उनसे किसी प्रसिद्ध कलाकार के आवाज की फरमाइश की होड़ सी मची रहती है ।
कई हस्तियों की आवाज़ निकाल लेते है
दूसरों की आवाज की कॉपी करने में महारत हासिल करने वाले दीपू प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर सोनिया गांधी ,राहुल गांधी, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ,पूर्व मुख्यमंत्री मायावती,पूर्व पीएम डॉ मनमोहन सिंह, पूर्व सी एम मुलायम सिंह यादव, पूर्व सी एम अखिलेश यादव आदि के अलावा राजनेता फिल्म हस्तियों शाहरुख खान अक्षय, कुमार ,अमिताभ बच्चन, आमिर खान, नाना पाटेकर ,रवि किशन, राजकुमार ,दिनेश लाल यादव निरहुआ की हुबहू आवाज निकाल लेते हैं ।
रामायण व महाभारत के प्रमुख पात्रों के डायलॉग निलेश को कंठस्थ है । नीलेश के मिमिक्री के बहुतेरे वीडियो मार्केट में भी आ चुके हैं । फेसबुक व यूट्यूब पर इनके सब्सक्राइब फॉलोअर्स लगातार बढ़ रहे हैं । हाल ही में एक निजी चैनल पर इनके प्रसारित वीडियो को 1 दिन में 12 लाख लोगों ने देखा व पसंद किया ।
विडियो हुआ वायरल
दीपू ने हाल ही में कोविड -19 पर आधारित एक बचाव संदेश मिमिक्री जारी किया है । इसका वीडियो अनेक चैनल पर वायरल हुआ है। इसमे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तथा मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के आवाज को हूबहू दर्शाया गया है। आजमगढ़ के एक निजी विद्यालय से बी टी सी दीपू के वीडियो को बहुतेरे लोग भावविभोर होकर देख व सुन रहे हैं । अपने तीन भाइयों में सबसे छोटे नीलेश बताते है कि वह किसी भी समय दो सौ से अधिक लोगो की मिमिक्री कर सकते हैं ।
रिपोर्ट- अनूप कुमार हेमकर
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