बलिया जिले में आज से करीब 25 साल पहले ओवरब्रिज का निर्माण हुआ था, निर्माण के पीछे का उद्देश्य था कि जिले में रेलवे क्रासिंग से आवागमन न हो, और जाम से मुक्ति मिल सके। लेकिन समस्या से अभी तक निजात नहीं मिल पाई है। क्योंकि ओवरब्रिज की जगह क्रासिंग से ही आवागमन किया जा रहा है।
2 दशक पहले बनकर तैयार पुल से नीचे गुजर रही रेलवे क्रासिंग के बंद नहीं होने से जाम के झाम से मुक्ति नहीं मिल पाई है। पुल निर्माण के बावजूद क्रासिंग पर 3 कर्मचारियों की तैनाती रहती है और विवाद की स्थिति बन जाती है। घंटों जाम भी लगा रहता है।
साल 1995 में रेल विभाग की अनुमति से सेतु निगम ने 848 करोड़ की लागत से ओवरब्रिज का निर्माण कार्य शुरु किया था। 2 साल तक निर्माण चला और साल 1997 में ब्रिज बनकर तैयार हो गया। इसका उद्घाटन 21 मार्च 1997 को देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा ने किया था।
ब्रिज बनाने के पीछे मकसद था कि चितु पांडेय चौराहे के पास हर घंटे लगने वाले जाम से निजात मिले। लेकिन सालों का वक्त गुजरने के बाद भी समस्या जस की तस बनी हुई है। ओवरब्रिज में प्रदेश सरकार के अलावा रेलवे का भी लाखों रुपए लगने के महकमे ने कई बार क्रासिंग को बंद कराने के लिए पत्र व्यवहार किया, लेकिन फिर भी कोई खास हल नहीं निकला।
कुछ साल पहले देश की तत्कालीन रेल मंत्री ममता बनर्जी ने प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री रामप्रकाश गुप्त को पत्र लिखकर जिला प्रशासन के सहयोग से क्रासिंग बंद कराने की मांग की थी, लेकिन तब भी कोई काम नहीं हुआ। चितु पांडेय चौराहे के पास स्थित इस रेलवे क्रासिंग पर ट्रेन गुजरने पर जाम लग जाता है। वाहनों के टकराने से दुर्घटनाएं होती हैं। रेल विभाग के द्वारा क्रासिंग पर 3 कर्मचारियों की तैनाती की गई है, जिनके वेतन पर भी हजारों रुपए खर्च होते हैं।
वहीं जनसंपर्क अधिकारी अशोक कुमार का कहना है कि ओवरब्रिज के नीचे स्थित रेलवे क्रासिंग को बंद करने के लिए पहले कई बार प्रयास हो चुके हैं। हालांकि किन्हीं कारणों से क्रासिंग अब तक बंद नहीं हो सकी है। इसको लेकर विकल्प की तलाश है, ताकि लोगों को जाम से मुक्ति व रेलवे का खर्चा बच सके।
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