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बलिया बीजेपी में नहीं है ‘सब चंगा सी’ !

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लोकसभा चुनाव-2024 का आगाज हो चुका है. पहले चरण की वोटिंग 19 अप्रैल को हो चुकी है. सबसे आखिरी चरण यानी सातवें चरण में 1 जून को बलिया में भी मतदान होगा. ज़ाहिर है चुनाव को लेकर बलिया की सियासी सरगर्मियां तेज़ हैं. लेकिन सियासी गलियारे में सबसे ज्यादा चर्चा भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की है.

बलिया में बीजेपी की चर्चा की वजह जीत नहीं, बल्कि भीतरखाने चल रही खींचतान है. टिकट बंटवारे से लेकर लोकल लीडर्स तक की अनदेखी ने जिले के कई बीजेपी नेताओं को नाराज़ और असहज कर दिया है. ऐसे तीन घटनाओं के जरिए इस अंदरूनी कलह की कलई खोली जा सकती है.

‘मस्त’ आउट, नीरज शेखर को टिकट:

2019 में बलिया लोकसभा सीट से बीजेपी के वीरेंद्र सिंह ‘मस्त’ चुनाव जीतकर संसद पहुंचे थे. ‘मस्त’ और उनके समर्थकों को उम्मीद थी कि एक बार फिर पार्टी उन्हें टिकट देगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. टिकट मिल गया पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के बेटे और बीजेपी के राज्यसभा सांसद नीरज शेखर को. बताते चलें कि 2007 के उपचुनाव और फिर 2009 के लोकसभा चुनाव में सपा की टिकट पर ही नीरज शेखर सांसद बने थे. 2014 में भी सपा ने उन्हें उम्मीदवार बनाया लेकिन बीजेपी के भरत सिंह से हार गए. 2019 में पार्टी से टिकट नहीं मिलने पर उन्होंने बीजेपी का दामन थाम लिया.

महज पांच साल के भाजपाई और पूर्व समाजवादी नेता को टिकट देने से बलिया बीजेपी के नेता खुश नहीं दिखे. बीजेपी कार्यकर्ताओं ने नीरज को टिकट मिलने पर गर्मजोशी दिखाई. हालांकि औपचारिकता के तौर पर टिकट मिलने के अगले ही दिन वीरेंद्र सिंह ‘मस्त’ से मुलाकात करने जरूर पहुंचे थे.

आनंद स्वरूप शुक्ला का फेसबुक पोस्ट:

17 अप्रैल को बलिया सदर से बीजेपी के पूर्व विधायक आनंद स्वरूप शुक्ला ने फेसबुक पर एक पोस्ट किया. आनंद स्वरूप ने लिखा है, “…2022 के विधानसभा चुनाव में आश्चर्यजनक अज्ञात व ज्ञात कारणों से भारतीय जनता पार्टी नेतृत्व ने मुझे मेरी जन्मभूमि व कर्मभूमि बलिया नगर विधानसभा क्षेत्र से स्थानान्तरित कर आपके बैरिया विधानसभा क्षेत्र से पार्टी का प्रत्याशी घोषित किया.”

इस पोस्ट में आगे वह लिखते हैं कि किन्हीं वजहों से बैरिया से उनकी हार हो गई. आनंद स्वरूप शुक्ला इसके बाद एक ऐलान करते हैं, “चुनाव परिणाम के पश्चात पार्टी नेतृत्व को मैंने अवगत कराया कि अब आगे मैं कभी भी बैरिया विधानसभा क्षेत्र से चुनाव नहीं लड़ूंगा.” यानी कि पूर्व विधायक और यूपी की योगी सरकार के पूर्व मंत्री ने साफ घोषणा कर दी वह कभी भी बैरिया से चुनाव नहीं लड़ेंगे.

इस कलह को समझने के लिए बैरिया का बैकग्राउंड समझने की जरूरत है. आनंद स्वरूप शुक्ला 2017 में बलिया सदर से विधायक बने थे. बैरिया से विधायक बने थे सुरेंद्र सिंह. लेकिन 2022 के यूपी विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने बलिया सदर से दयाशंकर सिंह को टिकट दे दिया. आनंद स्वरूप शुक्ला को ट्रांसफर किया गया बैरिया. और सुरेंद्र सिंह का टिकट काट दिया गया. नतीजा ये हुआ कि सुरेंद्र सिंह बागी हो गए. चुनाव का रिजल्ट आया तो बीजेपी बैरिया सीट गंवा चुकी थी.

सुरेंद्र सिंह एक बार बीजेपी वापसी कर चुके हैं. माना जा रहा है कि इसलिए उन्होंने खुद को हमेशा के लिए बैरिया से दूर कर लिया है. लेकिन विधायकी हारने के कोफ्त से उपजी लड़ाई अब तक जारी है और इसका असर अब लोकसभा चुनाव पर पड़ रहा है. दोनों ही खेमे फिलहाल तो बलिया में पार्टी के प्रचार से दूरी बनाए हुए हैं.

उपेंद्र तिवारी और सपा की बातचीत की ख़बरें:

बलिया में बीजेपी के एक और ब्राह्मण चेहरा हैं उपेंद्र तिवारी. 2017 में फेफना से विधायक थे. योगी सरकार में इनके नाम से भी मंत्री पद नत्थी था. 2022 में चुनाव हार गए. बलिया सीट से उपेंद्र तिवारी भी दावेदारी कर रहे थे. बीजेपी से टिकट मिलने की रेस में वीरेंद्र सिंह ‘मस्त’ और नीरज शेखर के अलावा उपेंद्र तिवारी को भी बताया जा रहा था. जब पार्टी ने यहां से नीरज को टिकट दे दिया तो उपेंद्र तिवारी को लेकर चर्चाएं तेज़ हो गईं.

अख़बारों ने साफ-साफ छापा कि सपा की ओर से बलिया में उपेंद्र तिवारी या अतुल राय को टिकट दिए जाने की उम्मीद है. चौक-चौराहों पर भी चर्चा थी कि उपेंद्र तिवारी सपा के लिए माकूल साबित हो सकते हैं. आख़िर कैसे? चर्चा चली कि घोसी से राजीव राय को टिकट मिलने के बाद बलिया से भी सवर्ण को टिकट देना अखिलेश के जातिगत इंजीनियरिंग में सेट नहीं हो पा रहा था. और ऐसे में उपेंद्र तिवारी को टिकट नहीं मिला.

हालांकि 20 अप्रैल को उपेंद्र तिवारी ने इसी ख़बर की कटिंग और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ अपनी एक तस्वीर फेसबुक पर शेयर की. उन्होंने अपनी फेसबुक पोस्ट में इस ख़बर का खंडन किया. उपेंद्र तिवारी ने भले ही सपा से टिकट मिलने की ख़बरों का खंडन कर दिया हो लेकिन ये चर्चाएं बीजेपी के खिलाफ ही काम कर रही हैं और पार्टी के समर्थन में बट्टा लगा रही हैं.

बलिया के बड़े बीजेपी नेताओं का असंतोष और फिलहाल अपने प्रत्याशी के  साथ ना दिखना लोकसभा चुनाव में पार्टी को नुकसान पहुंचाता दिख रहा है. हालांकि पार्टी से जुड़े जिले के एक नेता बलिया ख़बर से नाम न छापने की शर्त पर कहते हैं, “बड़ी पार्टियों में ये सब होता रहता है. लेकिन बीजेपी बहुत अलग किस्म की पार्टी है. यहां निजी हित को किनारे रखकर पार्टी हित में काम होता है. अपनी-अपनी नाराज़गी की वजहें हो सकती हैं, लेकिन सभी नेता-कार्यकर्ता आलाकमान के फैसले के साथ खड़ा है और नीरज शेखर के लिए लगा है. आने वाले दिनों में आप सभी नेताओं को एक साथ मंच पर देखेंगे.”

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बलिया इलेक्ट्रॉनिक मीडिया एसोसिएशन के अध्यक्ष बने डीडू सिंह

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बलिया इलेक्ट्रॉनिक मीडिया एसोसिएशन का चुनाव संपन्न हुआ। इसमें ANI/NDTV के संवाददाता करुणासिन्धु सिंह ‘डीडू’ को बलिया इलेक्ट्रानिक मीडिया एसोसिएशन का अध्यक्ष चुना गया है, जबकि TV9 भारतवर्ष के संवाददाता मुकेश मिश्र को महामंत्री और इंडिया वाइस के संवाददाता करुणेश पाण्डेय कोषाध्यक्ष बनाए गए। बता दें कि एसोसिएशन का चुनाव लोक निर्माण विभाग के निरीक्षण गृह में हुई बैठक के दौरान सम्पन्न हुआ।

वरिष्ठ पत्रकार अनूप कुमार हेमकर की अध्यक्षता में इलेक्ट्रॉनिक मीडिया एसोसिएशन के चुनाव में अनिल अकेला व धनंजय सिंह को संरक्षक नामित किया गया। उपेंद्र तिवारी और मुमसाद अहमद को उपाध्यक्ष, जेपी तिवारी को संगठन मंत्री व श्रवण कुमार पाण्डेय को प्रवक्ता की जिम्मेदारी दी गई। चुनाव सम्पन्न होने के बाद नवनिर्वाचित अध्यक्ष करुणासिन्धु सिंह ने कहा कि पत्रकारों के हितों की लड़ाई मजबूती से लड़ी जाएगी। पत्रकारों के मान-सम्मान से कोई समझौता नहीं होगा।

सभी समस्याओं का हल निकालने के लिए आपसी सहमति से कार्य करूंगा। उन्होंने बलिया में पीत पत्रकारिता के बढ़ते प्रभुत्व पर चिंता जताई। विश्वास दिलाया कि संगठन की नई कार्यकारिणी पत्रकारिता की प्रतिष्ठा को अक्षुण्ण बनाए रखने के लिए कार्य करेगी। इसके लिए जिला प्रशासन के वरिष्ठ अधिकारियों से समन्वय स्थापित किया जाएगा। नई कार्यकारिणी का गठन वरिष्ठ पत्रकार राजेश ओझा व पंकज कुमार राय की देखरेख में हुआ। वरिष्ठ पत्रकार अजय राय ने पर्यवेक्षक की भूमिका निभाई।

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बलिया में करंट की चपेट में आने से 2 युवकों की मौत, परिवार में पसरा मातम

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बलिया के चितबड़ागांव थाना क्षेत्र में अलग-अलग घटनाओं में करंट की चपेट में आने से 2 युवकों की मौत हो गई। इस घटना के बाद से ही दोनों मृतकों के परिवार में मातम पसर गया है। पुलिस ने शवों को क़ब्ज़े में लेकर पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया है।

पहली घटना चितबड़ागांव थाना क्षेत्र के ग्राम पंचायत कारो की है। जहां के रहने वाले 40 वर्षीय गौतम प्रसाद गुप्ता करेंट के चपेट में आ गए। वो सुबह अपने मिल में कार्य कर रहे थे तभी अचानक लाइट कट गई, बाहर निकल कर देखा तो सभी लोगों की लाइट जल रही थी। वापस आकर मीटर के पास जाकर जैसे ही तार को हिलाया, करंट की चपेट में आ गए और गंभीर रूप से झुलस गए। परिजनों ने आनन-फानन इलाज के लिए ज़िला अस्पताल ले गए, जहां चिकित्सकों ने मृत घोषित कर दिया। जानकारी मिलने पर पुलिस ने पंचनामा भरकर शव को पोस्टमार्टम की कार्रवाई शुरू कर दी है।

दूसरी घटना चितबड़ागांव क्षेत्र के ग्राम पंचायत नगवां गाई गाँव की है, यहाँ रहने वाले 24 वर्षीय अविनाश यादव ने खेत में काम करने के बाद घर आकर जैसे ही पंखा चलाने के लिए स्विच आन किया, वैसे करंट की चपेट में आने से बुरी तरह से झुलस गया। परिजनों ने उसे आनन—फानन में जिला अस्पताल पहुंचाया, जहां चिकित्सकों ने मृत घोषित कर दिया। सूचना पर पहुंची पुलिस ने शव को कब्जे में लेकर पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल स्थित पोस्टमार्टम हाउस में भेज दिया है। परिजनों का रोते—रोते बुरा हाल है।

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सोहन हत्याकांड के मुख्य आरोपी की गिरफ़्तारी के लिए NIA लखनऊ की टीम ने बलिया में दी दबिश

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बलिया के सोहन सिंह हत्याकांड में फरार चल रहे मुख्य आरोपी राजकुमार वर्मा जी गिरफ्तारी के लिए NIA लखनऊ की टीम ने 2 नक्सली ठिकानों पर छापा मारा। इसकी खबर लगते ही स्थानीय पुलिस प्रशासन में खलबली मच गई। बता दें कि आरोपी नक्सली की गिरफ्तारी पर 1 लाख का इनाम भी घोषित है। छापेमारी के दौरान एनआईए लखनऊ की टीम ने उनके परिजनों से आवश्यक पूछताछ कर मौके से दो मोबाइल व दो सिम को कब्जे में लिया। टीम जिले में घंटों जमी रही।

गौरतलब है कि सदर कोतवाली के सहरसपाली गांव में दो नवम्बर 2008 को सोहन सिंह की कुछ लोगों ने हत्या कर दी थी। हत्याकांड के बाद नक्सलियों ने खून से लिखे पर्चे फेंक कर हत्याकांड की जिम्मेदारी ली थी। इसकी खबर लगते ही प्रशासन में खलबली मच गई थी।

जांच-पड़ताल के दौरान गांव के कई घरों से नक्सलियों के हथियार, वर्दी, बम सहित अन्य सामग्री मिली थी। हत्या में 18 लोग नामजद हुए थे। हत्यारोपियों के तार बिहार के नक्सली संगठन से जुड़ने पर प्रशासन के होश उड़ गए थे। कई माह तक इसकी जांच चलती रही। पुलिस ने 17 आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया था, जो अब विभिन्न जेलों में हैं। हत्याकांड का मुख्य आरोपी राजकुमार वर्मा उसी समय से फरार है। इसी की गिरफ्तारी के लिए एनआईए की टीम ने सहरसपाली में राजकुमार व संतोष वर्मा के घर पहुंची और पूछताछ की।

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