बलिया स्पेशल
बलिया- पत्नी ने प्रेमी से करायी थी पति की हत्या, गिरफ्तार
तीन मार्च को मनियर थाना क्षेत्र के गौरा बंगहीं निवासी 35 वर्षीय शैलेंद्र राजभर की मौत मिर्गी के कारण नहीं बल्कि गला दबाने से हुई थी। इस का खुलासा पोस्टमार्टम रिपोर्ट से हुआ है। पुलिस ने हत्या की साजिश में मृतक की पत्नी सरली देवी उर्फ लीलावती एवं उसका आशिक बबलू राजभर निवासी गौरीशाहपुर (खड़ेसरी के मठिया) थाना मनियर को गिरफ्तार कर धारा 302, 201 व 120 बी के तहत जेल भेज दिया ।
बताया जाता है कि होली के अगले दिन शनिवार को शैलेंद्र के शव का अंतिम संस्कार करने के लिए परिजन नदी तट पर जाने की तैयारी कर रहे थे। इसी बीच किसी ने पुलिस को सूचना दी, पुलिस ने शव को कब्जे में लेकर पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया। मृतक की पत्नी सरली उर्फ लीलावती ने उस वक्त पुलिस को तहरीर दी थी कि मेरा पति होली के दिन सुबह करीब छह बजे घर से निकला। वह रात तक घर वापस नहीं लौटा। अगले दिन शनिवार को करीब 10 बजे उसका शव पानी के नाले में मिला। मेरा पति मिर्गी का रोगी था।
पोस्टमार्टम रिपोर्ट आने के बाद मामला गला दबाकर हत्या का निकला तो पुलिस छानबीन में जुट गयी। जिसमें मामला खुलकर आया कि मौत मिर्गी से नहीं बल्कि गला दबाकर की गयी है। जांच के दौरान पुलिस ने पाया की मृतक की पत्नी का नाजायज संबंध पड़ोसी बब्लू राजभर पुत्र मुन्ना राजभर से थी। मृतक की पत्नी अपने प्रेमी बब्लू को पति की हत्या के लिए अक्सर उकसाया करती थी। इससे बब्लू ने शैलेंद्र राजभर की हत्या कर शव को गांव से उत्तर बागीचे में कुएं में फेंक दिया।
पुलिस की मानें तो बब्लू एवं उसकी प्रेमिका मृतक की पत्नी सरली उर्फ लीलावती अपना जुर्म स्वीकार कर लिया है। मनियर पुलिस ने मृतक शैलेन्द्र राजभर के पिता रामजी राजभर पुत्र स्व. सुग्रीव राजभर से गुरुवार को तहरीर लेकर मुकदमा दर्ज किया। इसमें रामजी राजभर ने बताया है कि मेरे पुत्र शैलेन्द्र एवं मेरी पुत्र बहू सरली उर्फ लीलावती में होली के दो दिन पहले झगड़ा हुआ था। मेरी पुत्र वधू लीलावती ने अपने प्रेमी बब्लू के साथ साजिश करके मेरे लड़के शैलेंद्र की हत्या दो मार्च को करके उसकी लाश को गांव के उत्तर दिशा बगीचे में छुपा दिया। जब पुत्र घर नहीं आया तो हम लोगों ने उसकी तलाश की और लाश को तीन मार्च को गांव के उत्तर दिशा बगीचे में पाये और पुलिस को सूचना दी। इसके बाद पुलिस ने शव का पोस्टमार्टम कराया।
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बलिया के युवा लेखक धर्मराज गुप्ता को मिला लाल किले पर विशेष आमंत्रण!
बलिया/नई दिल्ली, 30 जुलाई — बलिया जनपद के लिए गर्व का क्षण है, जब जनपद के मनियर ब्लॉक अंतर्गत ग्राम चोरकैन्ड-मल्हौवाँ निवासी युवा लेखक धर्मराज गुप्ता को भारत सरकार द्वारा 78वें स्वतंत्रता दिवस समारोह में विशेष अतिथि के रूप में लाल किले, दिल्ली में आमंत्रित किया गया है। यह सम्मान उन्हें प्रधानमंत्री युवा लेखक योजना (YUVA) के तहत प्राप्त हुआ है, जिसे भारत सरकार के शिक्षा मंत्रालय एवं रक्षा मंत्रालय द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित किया गया है।
धर्मराज गुप्ता को प्रारंभ से ही इतिहास और स्वतंत्रता संग्राम की गहराइयों को जानने की जिज्ञासा रही है। वे बताते हैं कि उन्होंने बलिया की अगस्त क्रांति के संदर्भों को बचपन से ही बुज़ुर्गों से सुना, और इसी प्रेरणा से उन्होंने गहन ऐतिहासिक शोध आरंभ किया। उनकी इसी शोध यात्रा का परिणाम बनी पुस्तक “याद करूं तो…1942 बलिया की क्रांति”, जो 2023 के विश्व पुस्तक मेले में प्रकाशित हुई। इस पुस्तक को नेशनल बुक ट्रस्ट द्वारा प्रकाशित किया गया और यह भारत के साथ-साथ विश्व के अनेक देशों के पुस्तक मेलों में प्रदर्शित की गई।
धर्मराज गुप्ता ने लेखन के लिए देश के प्रतिष्ठित पुस्तकालयों—नेशनल लाइब्रेरी (कोलकाता), एशियाटिक सोसाइटी (कोलकाता), बनारस हिंदू विश्वविद्यालय आदि—में जाकर शोध किया और बलिया के गौरवशाली अतीत को वर्तमान में जीवंत किया।
उनकी लेखनी और दृष्टिकोण को राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता तब मिली जब उन्हें राष्ट्रपति भवन में राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू द्वारा भी आमंत्रित किया गया। राष्ट्रपति ने बलिया की क्रांति गाथा सुनकर गहरा आश्चर्य व्यक्त किया और पुस्तक को पढ़ने की इच्छा भी जाहिर की।
इस अवसर पर धर्मराज गुप्ता ने अपनी उपलब्धियों का श्रेय अपनी माता श्रीमती उर्मिला देवी, पिता श्री कन्हैया प्रसाद, तथा परिवार के अन्य सदस्यों को देते हुए बताया कि उनके मार्गदर्शक अशोक पत्रकार, तथा साहित्यिक सहयोगियों—श्री शशिप्रेम देव, उमेश चतुर्वेदी, अरुण सिंह, रियाजउद्दीन अंसारी, शिवजी पांडेय, मोहन श्रीवास्तव एवं आशीष त्रिवेदी—का योगदान उनकी लेखनी की नींव है।
उनकी इस ऐतिहासिक उपलब्धि पर बलिया जनपद के वरिष्ठ साहित्यकारों एवं सांस्कृतिक हस्तियों—जनार्दन चतुर्वेदी, राजेंद्र भारती, कमलेश श्रीवास्तव, डॉ. कादम्बिनी सिंह, नवचंद तिवारी, रामावतार ओझा आदि—में हर्ष और गौरव की लहर दौड़ गई है।
इस गौरवपूर्ण उपलब्धि ने एक बार फिर साबित कर दिया कि बलिया केवल क्रांति की धरती नहीं, बल्कि युवा प्रतिभाओं की जन्मस्थली भी है जो देश के वैचारिक भविष्य का नेतृत्व करने में सक्षम हैं।
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बलिया को रेलवे का डबल गिफ्ट, दो ट्रेनों का हुआ विस्तार, निर्भय नारायण सिंह के प्रयासों से मिला तोहफा
बलिया।
भारतीय रेल मंत्रालय ने बलिया के यात्रियों को एक साथ दो बड़ी सौगात दी है। उत्तर रेलवे के मुख्य यात्री परिवहन प्रबंधक (CPTM) एवं बलिया जनपद के अघेला दुधैला निवासी निर्भय नारायण सिंह के प्रयासों से दो प्रमुख ट्रेनों का विस्तार बलिया तक किया गया है।
बेगमपुरा एक्सप्रेस अब बनेगी ‘बलिया–जम्मू तवी एक्सप्रेस’
अब तक वाराणसी से जम्मू तवी जाने वाली 12237/38 बेगमपुरा एक्सप्रेस अब बलिया से चलेगी। यह ट्रेन दिन में सुबह 10:00 बजे बलिया से रवाना होकर वाराणसी 12:40 बजे पहुंचेगी और वहां से जम्मू तवी जाएगी। वापसी में ट्रेन शाम 3:20 बजे बलिया पहुंचेगी। इससे वैष्णो देवी जाने वाले श्रद्धालुओं, सेना व अर्धसैनिक बलों के जवानों को काफी सुविधा मिलेगी।
साबरमती एक्सप्रेस का विस्तार बलिया तक
वाराणसी–अहमदाबाद चलने वाली साबरमती एक्सप्रेस अब छपरा–बलिया मार्ग से चलेगी। यह ट्रेन छपरा से सुबह 10:15 बजे चलकर बलिया होते हुए वाराणसी 1:55 बजे पहुंचेगी और अहमदाबाद जाएगी। अहमदाबाद से वापसी में यह बलिया होते हुए छपरा 1:50 बजे पहुंचेगी। इस विस्तार से गुजरात में नौकरी–व्यवसाय करने वालों के साथ अयोध्या, उज्जैन व महाकाल मंदिर के भक्तों को बड़ी राहत मिलेगी।
पहले भी मिली थी सौगात
दो दिन पहले ही निर्भय नारायण सिंह के प्रयास से आनंद विहार टर्मिनल (दिल्ली)–बलिया–पटना ट्रेन शुरू की गई थी। यह ट्रेन सुबह 6 बजे बलिया से पटना जाती है और शाम 6 बजे पटना से लौटती है, जिससे विद्यार्थियों, मरीजों व व्यापारियों को सुविधा मिल रही है।
जनता की प्रतिक्रिया
बलिया के आमजन, विद्यार्थी, व्यवसायी, नौकरीपेशा लोग और प्रबुद्ध वर्ग, सभी ने निर्भय नारायण सिंह के प्रयासों की खुलकर प्रशंसा की है। लोगों का कहना है कि उनके अथक प्रयासों से पिछले वर्षों में बलिया को दर्जनों नई ट्रेनों की सौगात मिली है।
स्थानीय नागरिकों का मानना है कि आने वाले समय में भी उनके योगदान से बलिया को और नई सुविधाएं एवं कनेक्टिविटी का लाभ मिलता रहेगा।
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संपादकीय : “धार्मिक शोर में दब गई बलिया की सच्चाई”
बलिया। देश की सियासत में इन दिनों एक अजीब सी प्रवृत्ति देखने को मिल रही है, जब भी कोई ज़िम्मेदार नेता अपनी नाकामियों से घिरता है, वह जनता का ध्यान बंटाने के लिए धर्म या सांप्रदायिक बयानबाज़ी का सहारा लेता है।राजनीति में यह कोई नई बात नहीं है। लेकिन जब यह ऐसी बातें ज़मीनी हकीकत से ध्यान भटकाने का ज़रिया बन जाए, तो समझ लीजिए कि व्यवस्था ने आमजन से मुँह मोड़ लिया है।
बलिया की हालिया घटनाएं इसका एक जीता जागता उदाहरण हैं। समाजवादी पार्टी के विधायक ज़ियाउद्दीन रिज़वी के कावड़ यात्रा पर दिए बयान ने धार्मिक भावनाओं को झकझोर दिया। रिज़वी की टिप्पणी से काफी बवाल मच गया। भारत जैसे मुल्क में, जहां हर मज़हब के लोग रहते हैं, ऐसे स्टेटमेंट्स से सोशल हार्मनी पर गहरा असर पड़ता है। ऐसे समय में जब पूरा देश अमन-चैन और भाईचारे की ओर देख रहा है, एक जनप्रतिनिधि द्वारा इस तरह की बयानबाज़ी न केवल दुर्भाग्यपूर्ण है बल्कि उनकी ज़िम्मेदारी पर भी सवाल खड़े करता है।
रिज़वी साहब को इस तरह का विवादित बयान देने से पहले एक बार अपनी ही विधानसभा क्षेत्र की ज़मीनी हकीकत पर नज़र डाल लेनी चाहिए थी। विधायक जी को समझाना चाहिए कि लोग उन्हें विवाद खड़ा करने के लिए नहीं, बल्कि डेवलपमेंट के लिए चुनते हैं। उनकी विधानसभा में आज भी कई जगहों पर बुनियादी सुविधाओं का अभाव है, सड़कें जर्जर हालत में हैं, स्वास्थ्य सेवाएं अपर्याप्त हैं।
ऐसे में सवाल उठता है कि क्या एक विधायक का प्राथमिक कर्तव्य लोगों की समस्याओं का समाधान करना नहीं होना चाहिए? धर्म और आस्था के विषयों पर राजनीति करना आसान है, लेकिन ज़मीन पर विकास करना कठिन और चुनौतीपूर्ण कार्य है। ज़ियाउद्दीन रिज़वी को चाहिए कि वे अपने कर्तव्यों पर ध्यान केंद्रित करें और लोगों की उम्मीदों पर खरे उतरें। धार्मिक भावनाओं से खेलने की बजाय, अगर वे विकास की राजनीति करें तो न सिर्फ़ उनके क्षेत्र को लाभ होगा।
उधर, इस बयान पर मंत्री दयाशंकर सिंह ने भी तुरंत तीखा रिएक्शन दे दिया। टीवी और सोशल मीडिया पर ये बयान खूब वायरल हुआ। लेकिन उसी वक्त बलिया के ज़िला अस्पताल में पेशेंट्स को मोबाइल की टॉर्च जलाकर इलाज करवाना पड़ रहा था, क्योंकि हॉस्पिटल में बिजली नहीं थी। जिले के मुख्य हॉस्पिटल में ऐसी सुविधा नहीं है जहाँ हमेशा बिजली रहे और अगर बिजली जाए तो जनरेटर की व्यवस्था हो।
सबसे बड़ी विडंबना ये है कि इस इंसानियत को शर्मसार कर देने वाले सीन पर ना तो रिज़वी कुछ बोले, ना ही दयाशंकर सिंह। बल्कि दोनों साइलेंट हो गए, जैसे कुछ हुआ ही ना हो।
बलिया में दो-दो मंत्री हैं। लेकिन हालत ये है कि ज़िले के हॉस्पिटल अंधेरे में डूबे हुए हैं और इन रियल इशूज़ पर कोई बात नहीं करता क्योंकि इनमें वोट मिलने की संभावना नहीं हैं। क्या इन मंत्रियों ने इस मामले के बाद अस्पताल का औचक निरीक्षण किया? क्या उन्होंने किसी अधिकारी से जवाब तलब किया? जनता को बताया कि इस घटना के बाद क्या कार्रवाई हुई? क्या अस्पताल में बिजली और इलाज की बात चुनाव से कम ज़रूरी हो गई है?
बात यह भी है कि नेता वही बोलते हैं, जो जनता सुनना चाहती है। और जब जनता चुप रहती है, तो नेता मुद्दों से भागते हैं। यही वजह है कि धार्मिक बयान तुरंत सुर्खियाँ बन जाते हैं। यह कहना ग़लत नहीं होगा कि नेताओं की नाकामी के पीछे जनता की चुप्पी सबसे बड़ा कवच बन चुकी है।
जब कोई धार्मिक टिप्पणी होती है, तब लोग सोशल मीडिया पर टूट पड़ते हैं, मोर्चे निकालते हैं, नारे लगाते हैं। लेकिन जब बिजली नहीं होती, दवाइयाँ नहीं मिलतीं, स्कूल बंद होते हैं, तब वही जनता खामोश हो जाती है। क्या अब भी हम यह नहीं समझे कि यह सब एक सियासी रणनीति है? और धर्म, जाति और बयानबाज़ी की आड़ में नेताओं ने जनता को मूल मुद्दों से दूर कर दिया है।
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