बलिया स्पेशल
दस्तावेजों में हेरफेर करने वाले कर्मचारियों को क्यों बचा रहा है बलिया प्रशासन?
बलिया डेस्क: रजिस्ट्री कार्यालय में दस्तावेजों के साथ हेरफेर करके जमीनों पर नामांतरण कराने में सामने आये घोटाले के बाद तीन प्रभारी उपनिबंधक के साथ साथ 10 उपनिबंधक के खिलाफ मामला दर्ज हो गया है लेकिन इस मामले में कर्मचारियों के खिलाफ कोई एक्शन नहीं लिया गया है. आपको बता दें कि इस मामले की जांच कर रही टीम ने अपनी रिपोर्ट में कर्मचारियों को भी दोषी पाया था और उनके खिलाफ भी मामला दर्ज करने की सिफारिश की थी.
इस मामले की जांच के लिए डीएम ने तीन लोगों के एक टीम बनाई थी. जांच के दौरान इस टीम ने साल 1981 के साथ ऐसे मामले पाए थे जिसमे दस्तावेजों के साथ हेरफेर की गयी थी. हालाँकि उस दौरान तैनात रहे अधिकारीयों के खिलाफ तो मामला दर्ज हो गया लेकिन फ़िलहाल रजिस्ट्री कार्यालय के आरोपी कर्मचारी अभी मुक्त हैं.
आपको बता दें कि बलिया कोतवाली में इस तरह का एक और मामला दर्ज है जिसमे प्रभारी उपनिबंधक लक्ष्मण चौबे के साथ साथ 6 और लोगों को धोखाधड़ी के मामले में नामजद किया गया है. इसमें सब रजिस्ट्रार सहायक मेराज खान और दीप नारायण भी शामिल हैं.
अब सवाल उठता है कि कार्यालय में इन 39 सालों में तैनात रहे जब अधिकारीयों के खिलाफ मामला दर्ज किया गया है तो इसमें कर्मचारियों को क्यों छोड़ दिया गया है.
इस मामले में उनकी भी भूमिका से इंकार नहीं किया जा सकता है.वहीँ बात करें जिले के भूमाफियाओं की तो ऐसे मामले लगातार बढ़ते जा रहे हैं जिसमे विवादित मकानों और दुकानों पर भूमाफियाओं का कब्ज़ा बढ़ता जा रहा है. लेकिन प्रशासन उन पर हाथ नहीं डालता है. इसकी एक बड़ी वजह यह भी है कि इन भूमाफियाओं को सत्ता में बैठे लोगों को संरक्षण हासिल होता है जिसकी वजह से वह खुद को आसानी से बचा भी लेते हैं और अपना काम भी बना लेते हैं.
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प्रयागराज वकील हत्याकांड: बलिया के इस ब्लॉक प्रमुख पर 5 हज़ार का इनाम, पुलिस तलाश में जुटीं
प्रयागराज में चर्चित वकील अखिलेश शुक्ला हत्याकांड का मुख्य आरोपी बलिया निवासी अतुल प्रताप सिंह पर 5 हज़ार का इनाम घोषित किया गया है। आरोपी बीजेपी गड़वार ब्लॉक प्रमुख है और उसके ऊपर कई संगीन मुकदमे दर्ज हैं। इस मामले में बसंतपुर निवासी दुर्गेश सिंह और रामपुर निवासी प्रिंस सिंह पहले ही हाज़िर हो चुके हैं। इस मामले में ड्राइवर बसंतपुर निवासी अजय यादव अभी फरार चल रहा है।
जानकारी के मुताबिक, 17 नवंबर की रात सलोरी इलाके में विवाद के बाद अधिवक्ता को लाठी-डंडे, असलहे की बट और फायरिंग कर अधमरा कर दिया गया था। 20 नवंबर को अधिवक्ता की इलाज के दौरान लखनऊ में मौत हो गई थी। इस मामले में निखिल नामजद था जबकि चार अज्ञात आरोपी बनाए गए थे। मामले में 3 आरोपी निखिल सिंह, प्रिंस सिंह और मनोज सिंह पहले ही भेजे जा चुके हैं। पुलिस ने चौथे आरोपी को भी चिन्हित कर लिया था। वह छात्रनेता भी रह चुका है और मौजूदा समय में ठेकेदारी करता है।
अब पुलिस ने मुख्य आरोपी अतुल प्रताप सिंह पुत्र राणा प्रताप सिंह निवासी पचखोरा थाना गढ़वार जनपद बलिया और उसके चालक अजय यादव निवासी बसंतपुर सुखपुरा बलिया 5-5 हजार रुपये का इनाम घोषित किया है। साथ ही इन आरोपियों के खिलाफ गैर जमानती वारंट भी जारी किया गया है। इन दोनों की तलाश में पुलिस की तीन टीमें छापेमारी कर रही हैं।
प्रयागराज की शिवकुटी पुलिस ने वकील हत्याकांड में चार आरोपियों निखिल कान्त सिंह निवासी नरियांव थाना जहाँगीरगंज जनपद अम्बेडकर नगर, प्रिन्स सिंह उर्फ रणविजय सिंह निवासी रामपुर उदयभान थाना कोतवाली जनपद बलिया, मनोज सिंह निवासी टीलापुर पोस्ट जमधरवा थाना रेवती जिला बलिया और दुर्गेश कुमार सिंह निवासी ग्राम बसन्तपुर थाना सुखपुरा जनपद बलिया को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया है।
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जानिए कौन हैं बलिया के नए एसपी विक्रांत वीर ?
बलिया पुलिस अधीक्षक पर गाज गिरने के बाद योगी सरकार ने पीएसी की 32वीं वाहिनी में तैनात विक्रांत वीर को बलिया का नया पुलिस अधीक्षक बनाया है। बता दें कि बिहार-बलिया बॉर्डर के नरही थाना क्षेत्र में ट्रकों से अवैध वसूली में संलिप्त पुलिसकर्मियों के खिलाफ बलिया में बड़ी कार्रवाई हुई थी। एडीजी वाराणसी और डीआईजी आजमगढ़ की संयुक्त टीमों ने छापामार कर बलिया के थाना नरही अंतर्गत भरौली तिराहा पर अवैध वसूली के संगठित गिरोह का पर्दाफाश किया ।
मामले में पुलिसकर्मियों की संलिप्तता उजागर हुई है। तत्काल कार्रवाई करते हुए संबंधित थानाध्यक्ष नरही और चौकी प्रभारी कोरंटाडीह सहित तीन उपनिरीक्षक, तीन मुख्य आरक्षी, 10 आरक्षी और एक आरक्षी चालक को निलंबित किया गया है। वहीं देर रात बलिया एसपी को भी हटा कर विक्रांत वीर को बलिया की कमान सौंपी गई है। आईये जानते हैं
कौन हैं IPS विक्रांत वीर ?
विक्रांत वीर 2014 बैच के आईपीएस अधिकारी हैं। वह मूल रूप से बिहार में नालंदा के रहने वाले हैं। आईपीएस बनने से पहले वह मर्चेंट नेवी में थे। विक्रांत वीर के पिता बिहार में मलेरिया इंसपेक्टर के पद पर रह चुके हैं।
1997 में झारखंड के पलामू से इंटर की परीक्षा पास करने के बाद वह मुंबई की मरीन इंजीनियरिंग कॉलेज से बीएससी करने चले गए। साल 2011 में उनका चयन मर्चेंट नेवी में हो गया।
नौकरी करते हुए वह यूपीएससी की तैयारी भी कर रहे थे। आखिरकार साल 2014 में उनका सेलेक्शन आईपीएस के लिए हो गया। उनकी पहली तैनाती कानपुर में बतौर एएसपी हुई।
कानपुर से विक्रांत वीर फैजाबाद और बलिया के एसएसपी भी रहे। उसके बाद वह लखनऊ ग्रामीण के एसपी बने। बतौर एसपी हाथरस विक्रांत वीर का पहला जिला था।
हालांकि हाथरस में लड़की के साथ घटे जघन्य अपराध के बाद विक्रांत वीर को सस्पेंड कर दिया गया है। इस मामले ने पूरे देश में तूल तब पकड़ा जब पीड़िता की मौत के बाद पुलिसवालों ने उसकी लाश देर रात खुद ही जला दी।
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