बलिया– काला जामुन, बरफी, मदन खीरा, कलाकंद आदि मिठाइयों का नाम तो आपने सुना होगा, लेकिन बलिया के अंतिम छोर पर स्थिति द्वाबा के लालगंज बाजार में एक ऐसी मिठाई मिलती है जिसका नाम बलिया वालों ने शायद ही सुना होगा, लेकिन यह मिठाई सात समंदर पार सिंगापूर तक अपनी पहचान स्थापित कर चुकी है। ऐसी ही एक मिठाई का नाम है मदन घचाक।इस मिठाई का नामकरण चार दशक पूर्व मजाकिया अंदाज में किया गया था, लेकिन मिठाई को इतनी प्रसिद्धि मिली कि लोग इसे चाव से खाते भी हैं और अपने रिश्तेदारों के यहां भेजते भी हैं। इसे बनाने वाले दुकानदार भी बड़े खास अंदाज में बनाते हैं।
छेना और खोवा मिक्स इस मिठाई की चर्चा द्वाबा के लगभग सभी लोग करते हैं। मिठाई का नाम भले ही हंसने पर मजबूर कर देता है, लेकिन इसकी खासियत को इसी बात से समझा जा सकता है कि वर्ष 2016 में 20 सदस्यीय अमेरिकी चिकित्सीय टीम क्षेत्र में आई थी। जब उस टीम के सदस्यों को इस मिठाई के बारे में पता चल तो वे न सिर्फ इसे खाया, बल्कि अपने साथ ले भी गए। वर्तमान में यह मिठाई पार्सल होकर विदेश तक पहुंच रही है। पहले इसे मात्र एक दुकानदार बनाता था, लेकिन अब इसे लालगंज के कई दुकानदार बना रहे हैं।
मजाक में ही पड़ गया नाम– लालगंज में इस मिठाई का नाम चार दशक पहले पड़ा। हुआ यूं कि मुरारपट्टी निवासी मदन पाठक एक दिन लालगंज बाजार स्थित उमाशंकर प्रसाद की दुकान पर गए। वहां पहुंचने के बाद गांव के रिश्ते से आपसी मजाक शुरू हुआ। इसी दरम्यान हलवाई उमाशंकर प्रसाद ने मदन पाठक के नाम पर छेना और खोवा मिक्स 250 ग्राम की एक ही मिठाई तैयार कर दिया। उसे देख मदन पाठक हंसते हुए बोलने लगे कि अब ये कौन सी मिठाई तैयार कर दिए। हलवाई ने जवाब दिया यह मिठाई आपके नाम पर बनी है, इसलिए इसका नामकरण मैने मदनघचाक किया है।
मदन पाठक ने भी मिठाई को हंसी के अंदाज में खाया, लेकिन उसके स्वाद की सराहना करने से अपने आप को नहीं रोक सके। उस दिन के बाद वह रोज इस मिठाई को तैयार करने लगे और लोग उसे खाने के साथ ही मिठाई के स्वाद की तारीफ करने लगे। दो-तीन महीने में ही इस मिठाई के प्रसिद्धि मिलनी शुरू हो गई। दूर-दूर से लोग इस मिठाई को खरीदने आने लगे। पूर्व में यह 250 ग्राम वजन की ही एक मिठाई बनती थी, लेकिन समय के साथ इसका वजन भी कम होता चला गया। अब एक पीस मिठाई 100 ग्राम वजन में मिलती है।
सिगापुर में है विशेष मांग– लालगंज के बगल के गांव लच्छू टोला के दर्जनों परिवार दशकों पूर्व से सिगापुर में रहते हैं। वहां से कोई भी लच्छूटोला आता है तो वहां रह रहे सभी परिवारों के लिए यह मिठाई पार्सल के रूप से लेकर जाते हैं। आलम यह है कि सिगापुरी लोग भी सिगापुर में रह रहे भारतीयों से इस मिठाई की भारत से मांग करने लगे हैं, लेकिन नियम-कानून व हवाई जहाज में वजन की प्रतिबद्धता के चलते वहां के लोगों के लिए पर्याप्त मात्रा में यह मिठाई नहीं पहुंच पा रही है।
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