बलिया के पहले ज़िलाधिकारी थे डी.टी. रॉबर्ट्स। वर्ष 1879 में ग़ाज़ीपुर से पृथक होकर बलिया एक अलग ज़िला बना। और बलिया के पहले ज़िलाधिकारी बने डेविड टॉमस रॉबर्ट्स। इससे पहले वर्ष 1874 से 1877 के दौरान आई भीषण बाढ़ में बलिया शहर पूरी तरह से तबाह हो चुका था। डी.टी. रॉबर्ट्स के सामने एक नए ज़िले का प्रशासनिक संगठन खड़ा करने के साथ-साथ उजड़ चुके बलिया शहर को फिर से बसाने की चुनौती भी थी। डी.टी. रॉबर्ट्स ने इस चुनौती को न सिर्फ़ स्वीकार किया, बल्कि इस कर्मठता के साथ अपनी ज़िम्मेदारी निभाई कि वे जल्दी ही बलिया के लोगों में काफ़ी लोकप्रिय हो गए।
जिले को सुंदर बनाने में निभाई भूमिका: बलिया का ज़िलाधिकारी नियुक्त होने से ग्यारह साल पहले 1868 में रॉबर्ट्स सिविल सेवा में दाख़िल हुए। बलिया शहर में नए सिरे-से सड़कों, स्कूल, अस्पताल, सरकारी कार्यालय, बाज़ार और चौक के निर्माण की रूपरेखा तैयार करने में भी रॉबर्ट्स ने अहम भूमिका निभाई। अकारण नहीं कि वर्ष 1884 में प्रसिद्ध नाटक ‘देवाक्षर चरित’ लिखने वाले पंडित रविदत्त शुक्ल ने डी.टी. रॉबर्ट्स को ‘नवनिर्मित बलिया शहर का शिल्पकार’ कहा। रॉबर्ट्स के प्रयासों से बलिया के स्कूल में पढ़ने वाले छात्रों और शिक्षकों की संख्या में भी इज़ाफ़ा हुआ। रॉबर्ट्स के नाम पर बलिया में एक लाइब्रेरी भी स्थापित हुई और सोनबरसा में एक अस्पताल भी खोला गया।
भोजपूरी साहित्य में भी चर्चा: ‘देवाक्षर चरित’ नाटक का एक पात्र ज़िलाधिकारी रॉबर्ट्स की न्यायप्रियता का वर्णन करते हुए कहता है ‘आजकल एह ज़िला के हाकिम बड़ा दयावान और इंसाफ़वर आइल बाटै। रइयत के गोहार सुनतै निआब कै के ‘दूध के दूध और पानी के पानी’ कय देलैं।’ रॉबर्ट्स ने बलिया में रामलीला और नाटक आयोजित करने को भी प्रोत्साहन दिया।
वर्ष 1884 में ही भारतेन्दु ने बलिया के ददरी मेले में अपना प्रसिद्ध व्याख्यान दिया। ‘भारतवर्ष की उन्नति कैसे हो सकती है?’ शीर्षक वाले इस व्याख्यान के आरम्भ में ही भारतेन्दु ने डी.टी. रॉबर्ट्स का ज़िक्र कुछ इन शब्दों में किया है : ‘जहाँ रॉबर्ट्स साहब बहादुर ऐसे कलेक्टर हों वहाँ क्यों न ऐसा समाज हो। जिस देश और काल में ईश्वर ने अकबर को उत्पन्न किया था उसी में अबुल फ़ज़ल, बीरबल, टोडरमल को भी उत्पन्न किया। यहाँ रॉबर्ट्स साहब अकबर हैं तो मुंशी चतुर्भुजसहाय, मुंशी बिहारीलाल साहब आदि अबुल फ़ज़ल और टोडरमल हैं।’
भूमि बंदोबस्त की रिपोर्ट भी कराई तैयार: बलिया ज़िले में वर्ष 1882 से 1885 के दौरान हुए भूमि-बंदोबस्त की विस्तृत रिपोर्ट तैयार करने का श्रेय भी डी.टी. रॉबर्ट्स को जाता है। इतना ही नहीं बलिया के ज़िला बनने के पाँच वर्ष के भीतर ही बलिया के ऐतिहासिक विवरणों और आँकड़ों से युक्त जो गैजेटियर एफ़.एच. फ़िशर द्वारा सम्पादित किया गया, उसके लिए भी अधिकांश सामग्री डी.टी. रॉबर्ट्स ने ही उपलब्ध कराई थी।
बलिया से तबादला होने के बाद रॉबर्ट्स झाँसी के मजिस्ट्रेट और डिप्टी कमिश्नर भी रहे। वर्ष 1903 में डी.टी. रॉबर्ट्स का निधन हुआ। डी.टी. रॉबर्ट्स की स्मृति में बलिया में एक ट्रस्ट भी बनाया गया था, जिसके द्वारा आर्थिक रूप से कमजोर छात्रों को छात्रवृत्ति प्रदान की जाती थी।
प्रस्तुत आलेख बलिया के रहने वाले शुभनीत कौशिक ने लिखा है। शुभनीत, जेएनयू के सेंटर फॉर हिस्टोरिकल स्टडीज़ से पीएचडी कर रहे हैं। हाल ही में शुभनीत की ‘बलिया: इतिहास, समाज और संस्कृति’ नाम की किताब आई है, जो काफी चर्चा में है। यह पुस्तक भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में अहम भूमिका निभाने वाले पूर्वी उत्तर प्रदेश के जनपद बलिया का परिचयात्मक इतिहास है। बलिया के इतिहास, समाज और संस्कृति के विभिन्न पहलुओं पर यह किताब जल्द ही ऑनलाइन उपलब्ध होगी।
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