अमर शहीद मंगल पांडे की आज जयंती है। सन 1857 में, भारत एक विद्रोह का गवाह बना, जिसके बाद देश ने नई करवट ली। सिपाही विद्रोह ने पूरे देश को जैसे नींद से जगा दिया और इसके बाद घटनाओं का एक सिलसिला बना जो आने वाले समय में ब्रिटिश साम्राज्य से भारत की संपूर्ण आजादी पर खत्म होने वाला था इस विद्रोह का तात्कालिक कारण क्या था? ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की सेवा में तैनात सिपाहियों के बीच यह अफवाह फैल गई थी कि नई एनफील्ड राइफल्स के कारतूस बनाने में सुअर और गाय की चर्बी का भी इस्तेमाल किया जाता है।
साल 1857 के मार्च महीने की 29 तारीख थी। मंगल पांडेय 34वीं बंगाल नेटिव इंफेन्टरी के साथ बैरकपुर में तैनात थे। सिपाहियों में जबरन ईसाई बनाए जाने से लेकर कई तरह की अफवाहें फैल रही थीं। इनमें से एक अफवाह ये भी थी कि बड़ी संख्या में यूरोपीय सैनिक हिंदुस्तानी सैनिकों को मारने आ रहे हैं।
मंगल पांडेय को 8 अप्रैल, 1857 को फांसी दी गई थी। स्थानीय जल्लादों ने मंगल पांडेय को फांसी देने से मना कर दिया था। इसके बाद कोलकाता से चार जल्लादों को बुलाकर इस फौजी को फाँसी दी गई। लेकिन ये शायद कम लोगों को ही पता है कि 19 जुलाई 1827 को जन्मे मंगल पांडेय ने फांसी से कई दिन पहले खुद की जान लेने की कोशिश की थी। और, इस कोशिश में वह गंभीर रूप से ज़ख्मी भी हुए थे।
इतिहासकार किम ए वैगनर ने अपनी क़िताब ‘द ग्रेट फियर ऑफ 1857 – रयूमर्स, कॉन्सपिरेसीज़ एंड मेकिंग ऑफ द इंडियन अपराइज़िंग’ में 29 मार्च की घटना को सिलसिलेवार अंदाज़ में बयां किया है। हिअरसी ने यूरोपीय सैनिकों के हिंदुस्तानी सिपाहियों पर हमला बोलने की बात को अफवाह करार दिया, लेकिन ये संभव है कि हिअरसी ने सिपाहियों तक पहुंच चुकी इन अफवाहों की पुष्टि करते हुए स्थिति को बिगाड़ दिया। मेजर जनरल के इस भाषण से आतंकित होने वाले सिपाही 34वीं बंगाल नेटिव इंफेन्टरी के मंगल पांडे भी थे।”
खून से रंगी थी 29 मार्च की शाम
मंगल पांडेय 29 मार्च की शाम 4 बजे अपने तंबू में बंदूक साफ कर रहे थे। वैगनर लिखते हैं, “शाम के 4 बजे थे। मंगल पांडे अपने तंबू में बंदूक साफ कर रहे थे। थोड़ी देर बाद उन्हें यूरोपीय सैनिकों के बारे में पता चला। सिपाहियों के बीच बेचैनी और भांग के नशे से प्रभावित मंगल पांडेय को घबराहट ने जकड़ लिया। अपनी आधिकारिक जैकेट, टोपी और धोती पहने मंगल पांडेय अपनी तलवार और बंदूक लेकर क्वार्टर गार्ड बिल्डिंग के करीब परेड ग्राउंड की ओर दौड़ पड़े।”
ब्रितानी इतिहासकार रोज़ी लिलवेलन जोन्स ने अपनी किताब “द ग्रेट अपराइजिंग इन इंडिया, 1857 – 58 अनटोल्ड स्टोरीज, इंडियन एंड ब्रिटिश में मंगल पांडेय के दो ब्रितानी सैन्य अधिकारियों पर हमला बोलने की घटना को बयां किया है।
जोन्स लिखती हैं, “तलवार और अपनी बंदूक से लैस मंगल पांडेय ने क्वार्टर गार्ड (बिल्डिंग) के सामने घूमते हुए अपनी रेजिमेंट को भड़काना शुरू कर दिया। वह रेजिमेंट के सैनिकों को यूरोपीय सैनिकों द्वारा उनके खात्मे की बात कहकर भड़का रहे थे। सार्जेन्ट मेजर जेम्स ह्वीसन इस सबके बारे में जानने के लिए पैदल ही बाहर निकले। और, इस पूरी घटना के चश्मदीद गवाह हवलदार शेख पल्टू के मुताबिक पांडेय ने ह्वीसन पर गोली चलाई। लेकिन ये गोली ह्वीसन को नहीं लगी।”
जोन्स लिखती हैं, “जब अडज्यूटेंट लेफ्टिनेंट बेंपदे बाग को इस बारे में बताया गया तो वह अपने घोड़े पर सवार होकर वहां पहुंचे और पांडेय को अपनी बंदूक लोड करते हुए देखा। मंगल पांडेय ने फिर एक बार गोली चलाई और फिर एक बार निशाना चूक गया, बाग ने भी अपनी पिस्तौल से पांडेय पर निशाना साधा, लेकिन गोली निशाने पर नहीं लगी।” “लेकिन इसके बाद जब पल्टू ने जमादार ईश्वरी पांडेय को मंगल पांडेय को पकड़ने के लिए चार सैनिकों को भेजने को कहा तो ईश्वरी प्रसाद ने पल्टू को बंदूक दिखाते हुए कहा कि अगर मंगल पांडेय को भागने नहीं देंगे तो वह गोली चला देगा। पल्टू ने बताया, “घायल होने के कारण मैंने उसे जाने दिया”।
फिर मंगल पांडेय ने चलाई अपनी आख़िरी गोली
जोन्स लिखती हैं, “इसके बाद मंगल पांडेय ने अपने साथियों को गालियां देते हुए कहा, “तुम लोगों ने मुझे भड़का दिया और अब तुम मेरे साथ नहीं हो” “घुड़सवार और कई पैदल सैनिकों ने मंगल पांडेय की ओर बढ़ना शुरू कर दिया और ये देखकर मंगल पांडेय ने बंदूक की नाल को अपने सीने में लगाया, पैर के अंगूठे से ट्रिगर दबाया। गोली से उनकी जैकेट और कपड़े जलने लगे और वह घायल होकर जमीन पर गिर पड़े।”
अपनी हिम्मत और हौसले के दम पर समूची अंग्रेजी हुकूमत के सामने पहली चुनौती पेश करने वाले मंगल पांडे का नाम नाम ‘भारतीय स्वाधीनता संग्राम’ में अग्रणी योद्धाओं के रूप में लिया जाता है, जिनके द्वारा भड़काई गई क्रांति की ज्वाला से अंग्रेज़ ईस्ट इंडिया कंपनी का शासन बुरी तरह हिल गया था। मंगल पांडे की शहादत ने भारत में पहली क्रांति के बीज बोए थे।
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