यूपी में योगी सरकार वित्तीय अनुशासन और प्रबंधन की बात कह रही है. सरकार का ये भी दावा है कि उसने बिगड़ी व्यवस्था को पटरी पर लाने का साथ-साथ अर्थव्यवस्था के ढांचे में अमूल-चूल परिवर्तन किया है. लेकिन हकीकत इस तस्वीर से उलट है. कई विभागों में अधिकारी व कर्मचारियों को समय से वेतन नहीं मिल रहा. लिहाजा नाराज कर्मचारियों ने सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है.
उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ की अगुवाई वाली सरकार ने अपने कार्यकाल का एक वर्ष पूरा कर लिया है और सरकार ने अपना दूसरा बजट भी पास करा लिया है. लेकिन बजट में राज्य कर्मचारियों की उपेक्षा और सामयिक वेतन न मिलने से राज्य कर्मचारी बेहद नाराज हैं और आंदोलन की चेतावनी दे रहे हैं. कर्मचारियों ने 16 मई को रैली और 7 जून से कार्य बहिष्कार का ऐलान कर दिया है. कर्मचारी-शिक्षक संयुक्त मोर्चा के अध्यक्ष वीपी मिश्रा ने इसकी जानकारी दी.
हालांकि, सूबे के वित्त मंत्री राजेश अग्रवाल कहते हैं वेतन का विषय विभागों का है. उनकी ओर से समस्त प्रावधान बजट में कर दिए गए हैं.
राज्य सरकार कितना भी दावा करे, लेकिन हकीकत यह है कि वन विभाग, पीडब्लूडी, सहकारी समीतियों, स्थानिक निकायों, सार्वजनिक निगम, सिंचाई, शिक्षा, खाद्य रसद, दुग्ध विकास, होमगार्ड, समाज कल्याण विभाग के 50000 से ज्यादा अधिकारी व कर्मचारियों को समय से वेतन नहीं मिल रहा. इस संबंध में कर्मचारी संगठनों ने मुख्य सचिव राजीव कुमार से मुलाकात कर शिकायत की है.
एक ओर वेतन विसंगतियां और प्रमोशन का विवाद चल ही रहा था कि अब वेतन की जंग शुरू हो गई है. राज्य कर्मचारियों की सरकार से नाराजगी यूं ही नहीं है. ऐसे में लाखों की संख्या में संविदा कर्मियों के जीवन का तो भगवान ही मालिक है, जिन्हें 32 से 40 महीने तक का वेतन ही नहीं मिला है.
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