डॉ.अखिलेश कुमार पाण्डेय
भारतीय समाज एक धर्म प्रधान समाज है जहां पर कई धर्मों के लोग रहते हैं।सामान्यत:परंपरानुमोदित अवसरों पर संपन्न किए जाने वाले संस्कृति सम्मत व्यवहारों के पुंज को अनुष्ठान या कर्मकांड कहते हैं।अनुष्ठानकिसी समूह अथवा व्यक्ति के किहीं मूल्यों की वाह्य अभिव्यक्ति होते हैं।धर्म सामाजिक जीवन का प्रमुखक्षेत्र हैं जिसमें अनेक अवसरों पर धार्मिक कृत्य और अनुष्ठान संपन्न किए जाते हैं और अनुष्ठान संपन्नता मेंकहीं ना कहीं आए दिन धार्मिक उन्माद, पथराव,सामूहिक हत्या, आदि घटनाएं अखबारों की सुर्खियां बनतीहै।
इस समय की प्रमुख सुर्खियां “अजान बनाम हनुमान चालीसा” लगातार कौतुहल का विषय बनता जा रहाहै।इस्लाम अरबी भाषा का शब्द है जिसका अर्थ होता है “शांति में प्रवेश करना” हजरत मोहम्मद का जन्म 570ई॰ मे मक्के मे हुआ था(मृत्य 632 ई॰) ।अजान का अर्थ खुदा को पुकारने या फरियाद करने का संकेत है। अजान इस बात की जानकारी देता है बल्कि यह भी संकेत देता है कि अपनी मौजूदगी दर्ज करवाएं कि नमाज का समय हो गया। इस प्रकार हम कह सकते हैं अजान साधन है और नमाज साध्य है। अज़ान के इतिहास को देखा जाए तो इसकी शुरुआत मक्का में “बिलाल ” के द्वारा शुरुआत की गई।
प्रारंभ में नमाजव्यक्तिगत रूप से की जाती थी लेकिन कालांतर में अजान के साथ नमाज की सामूहिकता की शुरुआत हुई और धर्मावलंबियों का मानना था कि सामूहिकता में नमाज अदा करना ज्यादा प्रभावी होगा। भारत में ही नहीं इस्लाम धर्म को मानने वाले सभी देशों में सामूहिक अजान और नमाज की शुरुआत हुई।हनुमान चालीस एक धार्मिक पाठ है।इसको पढ़ने से व्यक्ति को मन और आत्मा को शांतिप्राप्ति होती है। हनुमान चालीसा के रचयिता गोस्वामी तुलसीदास जी हैं। हनुमान चालीसा समझने के पहलेहमें हनुमान जी को समझना पड़ेगा। हिंदू धर्म के मान्यता के अनुसार भगवान शिव जी के 11वें रुद्रावतार,भगवान श्रीराम के अनन्य भक्त एवं कलयुग के सबसे ज्यादा हिंदुओं के दिलों में बसने वाले हनुमान परमेश्वरकी भक्ति की सबसे लोकप्रिय अवधारणाओं और भारतीय महाकाव्य रामायण में सबसे महत्वपूर्ण पात्रों मेंएक हैं भगवान शिव जी के सभी अवतारों में सबसे बलवान और बुद्धिमान माने जाते हैं।
रामायण केअनुसार वे श्रीराम के अत्यधिक प्रिय हैं इस धरा पर जिन सात मनीषियों को अमरत्व का वरदान प्राप्तहै।उनमें बजरंगबली भी है।हनुमान जी का अवतार भगवान राम की सहायता के लिए हुआ। हनुमान जी कीपराक्रम की असंख्य गाथाऐं प्रचलित है।इसलिए उन्होंने जिस तरह से राम के साथ सुग्रीव की मैत्री कराईऔर वानरों की मदद से असुरों का मर्दन किया। वह अत्यंत प्रसिद्ध है। हनुमान जी शक्ति,ज्ञान,भक्ति एवंविजय के भगवान,बुराई के सर्वोच्च विध्वंसक, भक्तों के रक्षक, कलयुग के सबसे महत्वपूर्ण देवता है। लेकिनहनुमान चालीसा का पाठ भारतीय समाज में इस्लाम के आगमन के पहले से हो रहा है अगर देखा जाए तोभारतीय समाज में इस्लाम के बाद की स्थितियों की विवेचना एक विवादित विषय रहा है इस्लाम के पक्षकारतथा सम्यक दृष्टि से विवेचना करने वालों के बीच सदैव मतभेद रहा।
हिन्दुओं का देखा-देखी मुसलमान जनता भी गाजी मिया,पाॅचपीर,ख्वाजा आदि कल्पित देवताओं की पूजा करनेलगी।मुसलमानों के पीर अधिकांश ग्राम देवता बन बैठे।दशहरा एवं रथयात्रा की तर्ज पर मोहर्रम में ताजियानिकालने लगे। ताजियों का रिवाज भारत को छोड़कर और किसी देश में नहीं है।मुगल काल आते-आते शबेबरात का पर्व सारे भारत के मुसलमानों में मनाया जाने लगा। यह शायद शिवरात्रि का अनुकरण था। क्योंकि शिवरात्रि उस समय बड़ी धूमधाम से बनाई जाती थी।सौभाग्यवती मुस्लिम स्त्रियों की मांग में सिंदूर लगानेतथा नाक में नथ एवं हाथ में चूडिय़ां पहनने लगी ,अरब के लोग पानी की कमी के कारण स्नान कम करतेथे।कालांतर में मुसलमानों ने कम स्नान नहाना अपना धर्म बना लिया ।
किंतु भारत में स्नान के आनन्द सेमुसलमान अपने को वंचित नहीं किया ।भारत की परंपरागत विद्या, ग्रह,नक्षत्र आदि की महिमा भीमुसलमानों के बीच कायम हुई हुमायूं और अकबर हर रोज पोशाक उस रंग की पहनते थे।जो जिस दिन केस्वामीग्रह का रंग होता है ।इस प्रकार हम कह सकते हैं कि धार्मिक विचारधारा के अनुसार सभी धर्मों कोअपना अनुष्ठान या कर्मकांड (उपासना पद्धति) को करने की स्वातंत्र्ता है।और जिसके द्वारा ही समाज केसांस्कृतिक मूल्यों और प्रतिमानों का अनुरक्षण किया जा सकता है इस सन्दर्भ में बैरिया( बलिया ) केसमाजशास्त्री डाँ॰ अखिलेश कुमार पाण्डेय(असिस्टेंट प्रोफेसर,समाजशास्त्र विभाग, श्री सुदृष्टि बाबा पीजीकॉलेज सुदिष्टपुरी,रानीगंज बलिया) ने कहा है कि
“वर्तमान समय में ध्वनि विस्तारक के अनुप्रयोग की परंपराने समाज में कटुता का संचार किया है जो हिंदू और मुस्लिम धर्म के लोगों के बीच विषाक्त बनता जा रहाहै।हिंदू और मुस्लिम धर्मावलंबियों ,राजनेताओं को अपने कर्तव्यों और अधिकारों के बारे में गहराई से समझना होगा । धर्म और राजनीति दोनों अलग-अलग विषय है। राजनेताओं को गरीबी उन्मूलन और मुद्रास्फीति को कम करने, अमीरी और गरीबी की खाई को कम करने ,सड़क, बिजली, पानी, स्वास्थ्य,रोजगार के बारे में बात करनी चाहिए।
धर्म की देखभाल पुजारियों और आध्यात्मिक लोगों द्वारा की जा सकती है। कुछ लोग धार्मिक या अन्य मुद्दों को उठाकर समाज को विभाजित करने की कोशिश कर रहे हैं। गुणात्मक (अर्थपूर्ण) शिक्षा के अभाव के कारण लोग भ्रष्ट,राजनेताओं के जाल में फंस जाते हैं सार्थक और प्रासंगिक शिक्षा ही लोगों को गुमराह होने से बचा सकती है तभी समाज का सर्वांगीण विकास सुनिश्चित हो सकता है”
लेखक श्री सुदृष्टि बाबा पीजी कॉलेज रानीगंज, बलिया में समाजशास्त्र विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर हैं
(डिस्क्लेमर-लेख में व्यक्त विचार लेखक के निजी विचार हैं . ईटी का इससे सहमत होना जरूरी नहीं है.)
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