माँ बाप और घर वालों का सपना होता है कि उसके बच्चे पढ़ लिख ले और ज़िन्दगी में कुछ ऐसा काम कर ले ताकि उसे अपनी ज़िन्दगी में किसी का मोहताज़ न होना पड़े. ऐसे में सभी घर वालों की पूरी कोशिश होती है कि वह अपने बच्चों को पढ़ाएं और ऐसा ही सपना राजस्थान जयपुर जिले के कोटपूतली तहसील के रहने वाले भीखाराम वर्मा ने भी अपनी बेटी के लिए देखा था.
क्योंकि इस दुनिया में बेटी के सिवा उनका कोई न था. दरअसल बीवी तो काफी पहले ही चली गयी थी और एक बेटा भी था जो एक कार एक्सीडेंटल में चला गया दुनिया ने. ले देकर बची एक बेटी अलका, जिसका दाखिला उन्होंने बीकानेर के मेडिकल कालेज मे करा दिया इस उम्मीद के साथ कि वह अपना और उनका दोनों का सपना डॉक्टर बनकर पूरा करेगी. यूँ भीखाराम वर्मा की आर्थिक हालत ऐसी थी कि लोगो के यहाँ नौकरी करके अपना पेट पालते थे.
बेटी की फीस भरना उनके लिए सबसे बड़ी चुनौती होती थी. बेटी की पढ़ाई के थर्ड इयर में फीस जमा करनी थी और पैसे थे नहीं. इसलिए उन्होंने इतनी बड़ी कु’र्बा’नी दे दी. दरअसल उन्होंने अपनी किडनी का सौदा कर दिया और उसे बेचकर जो पैसे आये, उससे अपनी बेटी अलका की फीस भरी. लेकिन बेटी ने उनके साथ क्या किया?
पढ़ाई के दौरान बेटी अलका एक लड़के के इश्क पड़ गयी और इस कदर उसमे डूब गयी कि जब उस लड़ने ने अलका को छोड़ा तो वह यह सदमा बर्दाश्त नहीं कर पाई और खुद को फां’सी लगाकर ख़ुद कुशी कर ली. उसने अपने ब्यायफ्रेडं नीलेश केनाम एक नोट भी लिखा. बेटी की खबर सुनकर पिता भीखाराम सदमे में चले गए. उनके इस बात पर यकीन ही नहीं हो रहा था कि उनकी बेटी इस दुनिया में नहीं है. वह उन्हें छोड़कर चली गई.
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