बलिया के लोगों को शुद्ध और स्वच्छ पेयजल उपलब्ध कराने का सरकारी दावा विफल साबित हुआ है। 310 गांवों के भू-जल में मानक से अधिक आर्सेनिक होने की पुष्टि के सालों बाद भी लोगों को शुद्ध पेयजल नहीं मिल रहा। जल निगम 40 योजनाओं पर कार्य कर रहा है। लेकिन पिछले 2 सालों में मात्र संवरूपुर और मिर्ची खुर्द में प्रोजेक्ट से आपूर्ति हुई, लगभग 6 हजार की आबादी को शुद्ध पेयजल मिला। शेष का कहीं अता-पता नहीं।
इतना ही नहीं जिले में भू-जल का स्तर भी लगातार खिसकता जा रहा है। रसड़ा ब्लॉक में भूगर्भ जलस्तर प्रतिवर्ष 20 से 30 सेमी जबकि अन्य 16 ब्लॉकों में भी एक से 8 से 10 सेमी कम हो रहा है। हालांकि विभाग का दावा है कि पिछले कुछ सालों में खेत तालाब समेत अन्य योजनाओं से रसड़ा में स्थिति में सुधार हुआ। लघु सिंचाई विभाग के अभियंता श्याम सुंदर के मुताबिक तमाम कोशिश से रसड़ा में भी वाटर लेवल 6 मीटर हो गया है।
वहीं अमरनाथ मिश्र पीजी कालेज दूबेछपरा के पूर्व प्राचार्य पर्यावरणविद् डॉ. गणेश पाठक का कहना है कि भू-गर्भ जल बचाने के लिए सरकार के साथ सभी को अपने स्तर से प्रयास करना चाहिए। पिछले 2 सालों में जल संरक्षण के लिए कुल 34 तालाबों का निर्माण हुआ। भूगर्म विभाग की ओर से रसड़ा क्षेत्र में दो बड़े जलागम क्षेत्र (वाटरशेड ) बनाने की संस्तुति हुई। पानी की बर्बादी रोकना चाहिए।
विश्व जल दिवस की सार्थकता तभी है जब बूंद-बूंद का संरक्षण हो। उद्योग धंधों के अतिशय दोहन, घर-घर टुल्लू लग जाने से, बढ़ते जल पंप के से खपत ही नहीं बढ़ी बल्कि पानी की बर्बादी भी हो रही है। जागरूकता और तमाम कार्यक्रमों के बावजूद जल की बर्बादी पर नियंत्रण नहीं हो पा रहा। अनावश्यक जल का अपव्यय रोकना होगा।
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