बलिया डेस्क : लॉकडाउन लागू होने के बाद बड़े शहरों से अपने गांव लौटे प्रवासी कामगारों के सामने अब रोज़ी-रोटी की समस्या खड़ी हो गई है। गांव में उन्हें कई महीनों से कोई रोज़गार नहीं मिला है, जिसके चलते उनके पास अब गुज़ारे के लिए भी पैसे नहीं बचे हैं। ऐसे में कामगारों और उनके परिजनों को भुखमरी का डर सताने लगा है।
लॉकडाउन लागू होने के बाद जब इन कामगारों का कामकाज बड़े शहरों में ठप हो गया था तो इन्होंने अपने गांव का रुख इस उम्मीद के साथ किया था कि इन्हें यहां कोई काम मिल जाएगा। सरकार ने भी इनकी उम्मीद के मुताबिक इनसे काम देने का वादा भी कर लिया था। लेकिन हमेशा की तरह वादे ने सिर्फ सुर्खियां बटोरीं और कामगारों के हाथ कुछ न लगा।
प्रवासी कामगार बिना काम के ही अपने-अपने गांवों में पड़े रहे। बेकार बैठने की वजह से धीरे-धीरे इनकी जमापूंजी भी खत्म होती रही और अब नौबत ये आ गई है कि इनके पास खाने तक के पैसे नहीं बचे हैं। कामगारों को अब ये डर सता रहा है कि इसी तरह कुछ दिन और चला तो वो और उनका परिवार भूख से मर जाएंगे। हालांकि प्रवासी कामगार भूखे न मरें इसके लिए सरकार की ओर से इंतेज़ाम किए गए थे।
सरकार ने इन्हें राशन के साथ ही आर्थिक पैकेज देने का भी ऐलान किया था। लेकिन अधिकारियों की लापरवाही व मनमानी के चलते न तो सभी प्रवासियों को आर्थिक पैकेज मिला और न ही किसी तरह की कोई मदद। सरकार ने मज़दूरों को मनरेगा के तहत काम देने का भी वादा किया था। लेकिन मनरेगा का कार्य भी धरातल पर नहीं होने के कारण मज़दूरों की आजीविका पर खतरे के बादल मंडराने लगे हैं।
ऐसे में प्रवासियों को अब समझ नहीं आ रहा है कि वो अपना और अपने परिजनों का पेट आखिर किस तरह पालें। ऐसा नहीं है कि ये हाल सिर्फ मज़दूरों का है। निजी कंपनियों के इंजीनियर, टेक्नीशियन, कैमिस्ट वैज्ञानिक सहित उच्च पदस्थ लोगों की हालत भी अच्छी नहीं है।
वहीं प्रवासियों के साथ गांव में रह रहे परिजनों की सम्पति को लेकर जगह-जगह विवाद होने की भी ख़बरें सामने आ रही हैं। जागरुक लोगों को इन प्रवासियों की दिक्कत का पूरी तरह से अंदाज़ा है। इसी वजह से कुछ जागरूक लोगों ने सरकार से प्रवासियों के हित में कोई ठोस व्यवस्था लागू करने की अपील की है।
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