बलिया में हिन्दू मुस्लिम एकता की मिसाल देखने को मिली जब रसड़ा तहसील में ऐतिहासिक रोट (लट्ठ) पूजन का आयोजन किया गया। जहां हजारों लोगों ने श्री नाथ बाबा की जन्मस्थली पर लाठियों को लड़ाकर पूजन किया। गंगा यमुनी सभ्यता का प्रतीक यह पूजन अंग्रजों द्वारा जजिया कर के खिलाफ शुरू किया गया था।
लाठियों की चटकार और गूंजते नारों के बीच बलिया के ऐतिहासिक रोट पूजन का आयोजन रसड़ा तहसील के महाराज पुर के मठ पर किया गया। सिद्ध संत श्री नाथ बाबा की जन्मस्थली पर हजारों श्रद्धालुओं ने लाठियों का प्रदर्शन करते हुए रोट चढ़ाया।
बसपा विधायक उमाशंकर सिंह ने कहा कि यह गंगा यमुनी सभ्यता का प्रतीक एक ऐसा आयोजन है जहां पहले रोशन साह की मजार की पूजा होती है फिर श्री नाथ बाबा को रोट चढ़ाया जाता है। यहां के मठाधीश अवध बिहारी के अनुसार, सेंगर वंशियों के लिए यह पूजन खासा महत्व रखता है।
दरसल आजादी के पूर्व अंग्रेजों द्वारा किसानों के शोषण के लिए जजिया कर लगाया गया था। उस दौरान रोशन शाह और श्रीनाथ बाबा मित्र हुआ करते थें। जिन्होंने लाठियों के बल पर जजिया कर का विरोध किया और किसानों को मुक्ती दिलाई। श्रीनाथ बाबा के 6 मठ हैं जहां हर 2 वर्ष बाद रोट पूजन का आयोजन किया जाता है।
यहां लोग अपने अपने गावों व घरों से लाठियां लेकर आते है। चलिये आपको बताते हैं इसके पीछे की पूरी कहानी, बलिया के महाराजपुर गांव में रक्षाबंधन के दिन श्रीनाथ बाबा के मंदिर पर लाखों की संख्या में भक्त अपने अपने हांथो में लाठियां लेकर आते है और श्रीनाथ बाबा की पूजा और परिक्रमा करते हैं।
दरअसल परंपरा के अनुसार यहां के किसानों पर अंग्रेजी हुकूमत ने जजिया कर लगा दिया था और इस नए जजिया कर से परेशान किसानों ने श्रीनाथ बाबा से जजिया कर से मुक्त कराने का निवेदन कर दिया। तब श्रीनाथ बाबा ने परेशान किसानों को इन्ही लाठियों के बल पर अंग्रेजों से लड़ कर जजिया कर से मुक्त कराया था।
तभी से ये अनोखी लट्ठ पूजा यहां के सेंगर राजपूतो के लिए परंपरा बन गयी जहां हर साल रक्षाबंधन के दिन हजारों गांवों के लाखों लोग फूलों से पूजा करने के बजाय जगह लाठियों से पूजा करते आ रहे हैं। इस पूजा में आज क्षेत्रीय बीएसपी विधायक उमाशंकर सिंह और सपा से राज्य सभा सांसद नीरज शेखर की उपस्थिति में एक बच्चे ने श्रीनाथ बाबा पर लिखी पुस्तक का विमोचन किया।
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