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आपातकाल की बरसी पर हर साल क्यों याद आते महानायक जेपी ?

बलिया : भारत की नौजवान पीढ़ी आज के माहौल में खुलकर अपने विचार रखती है। आज की पीढ़ी कल्पना भी नहीं कर सकती कि जिन लोगों ने 43 साल पहले आपातकाल का दौर देखा है तब की स्थिति क्या रही होगी। आज के माहौल में तो नौजवान पीढ़ी खुलकर सरकार की आलोचना भी करती है। जरा सोचिए अगर नौजवानों को फेसबुक की हर पोस्ट पहले सरकार को भेजनी पड़े और सरकार जो चाहे वही फेसबुक पर दिखे तो क्या होगा। अगर ट्विटर, व्हाट्स एप के मैसेज पर लग जाए सेंसर। टीवी पर वही दिखे, अखबार में वही छपे जो सरकार चाहे। मीडिया के सभी क्षेत्र में बोलने, लिखने व सुनने की आजादी पर सेंसर हो तो क्या होगा। ये बातें कुछ अजीब जरूर हैं ¨कतु देश में 43 साल पहले आज ही के दिन कुछ ऐसी ही तस्वीर सबके सामने थी। 43 साल पहले जब इंदिरा गांधी सरकार ने आपातकाल लगाया था तो जुल्म का ऐसा ही दौर चला था। 25-26 जून की दरम्यानी रात 1975 से 21 मार्च 1977 तक 21 महीने के लिए भारत में आपातकाल घोषित किया गया था। वह दौर इतना भयानक था कि उसे आज भी लोग नहीं भूल पाते। आज भी बहुत से लोग आपातकाल को कांग्रेस की सबसे बड़ी भूल मानते हैं। यह सच है कि तब सरकार की नीतियों की वजह से महंगाई दर 20 गुना बढ़ गई थी। गुजरात और बिहार में शुरू हुए छात्र आंदोलन के साथ जनता आगे बढ़ती हुई सड़कों पर उतर आई थी। उनका नेतृत्व कर रहा था 70 साल का एक बुजुर्ग जिसने इंदिरा सरकार की जन विरोधी नीतियों के खिलाफ संपूर्ण क्रांति का नारा दिया। उस बुजुर्ग का नाम है लोकनायक जयप्रकाश नारायण। सिताबदियारा के जेपी के संगी शिक्षक योगेंद्र ¨सह बताते हैं कि जिस रात को इंदिरा गांधी ने आपातकाल की घोषणा की, उस रात से पहले दिल्ली के रामलीला मैदान में जयप्रकाश नारायण की अगुवाई में एक विशाल रैली हुई थी। वह तारीख थी 25 जून 1975 और इस रैली में लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को ललकारा था। उनकी सरकार को उखाड़ फेंकने का आह्वान किया। इस रैली में कांग्रेस और इंदिरा विरोधी मोर्चे की मुकम्मल तस्वीर सामने आई, क्योंकि इस रैली में विपक्ष के लगभग सभी बड़े नेता थे। यहीं पर राष्ट्रकवि दिनकर की मशहूर लाइनें-¨सहासन खाली करो, जनता आती है की गूंज एक विशाल नारा बन गई थी। उस दरम्यान देश के जितने भी बड़े नेता थे, सभी सलाखों के पीछे डाल दिए गए। एक तरह से जेलें राजनीतिक पाठशाला बन गई। बड़े नेताओं के साथ जेल में युवा नेताओं को भी बहुत कुछ सीखने-समझने का मौका मिला।

आपातकाल के महानायक जेपी के गांव की दास्तां

आपातकाल की उसी बरसी से एक दिन पूर्व हम उसी महानायक के गांव सिताबदियारा में थे। यह इलाका बहुत पहले से यूपी-बिहार दो सीमा में बंटा हुआ है। खास यह कि कभी मुंशी प्रेमचंद की कल्पनाओं वाले गांव की तरह दिखने वाले सिताबदियारा में अब बहुत कुछ बदल गया है। अब यूपी हो या बिहार दोनों ही सीमा के गांवों में सड़कें, बिजली, पानी टंकी, प्रर्याप्त स्कूल, कालेज और जेपी के नाम पर भी स्मारक सहित बहुत कुछ है। यूपी सीमा के जयप्रकाशनगर की तस्वीर बदलने का किस्सा पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर से शुरू होता है, वहीं बिहार के सिताबदियारा के लाला टोला के विकास का श्रेय नीतीश कुमार को जाता है।

आपातकाल की बरसी पर ही वर्ष 2015 में मोदी सरकार की एक घोषणा भी सभी पर भारी पड़ी है। आपातकाल की बरसी पर ही वर्ष 2015 में केंद्र की मोदी सरकार ने बिहार सीमा के लाला टोला को एक बड़ा पैकेज प्रदान किया था। वह है राष्ट्रीय जेपी म्यूज्यिम कांप्लेक्स। इस म्यूज्यिम कांप्लेक्स में राष्ट्रीय स्तर का शोध अध्ययन केंद्र तो होगा ही, यहां राष्ट्रीय ध्वज का भी निर्माण होगा। इन स्मारकों के निर्माण से अब बिहार सीमा के सिताबदियारा के लाला टोला का लुक पूरी तरह बदल गया है।

भ्रष्टाचार के विरूद्ध आजीवन जंग लड़ने वाले जेपी के उसी इलाके में कटान रोकने के नाम पर भ्रष्टाचार की जड़ लगातार गहरी होती जा रही है। पिछले छह सालों की तस्वीर पर ही नजर डालें तो धन का इससे बड़ा बंदरबांट और कहीं नहीं हुआ होगा। इस क्षेत्र के यूपी-बिहार दोनों सीमा के गांवों को घाघरा से बचाने के लिए वर्ष 2017 तक बिहार ने 80 करोड़ और यूपी ने भी लगभग 20 करोड़ सरकारी धन को पानी में बहाया या यूं कहे तो अपनी जेब भरने में कोई कसर बाकी नहीं रखा। इस साल तो सभी के लिए एक तरह से धनकुबेर साक्षात जेपी की धरती पर उतर आए हैं। इस गांव में बीएसटी बांध से बाहर बाढ़ प्रभावित गांवों को बचाने के लिए यूपी की ओर से लगभग 40 करोड़ और बिहार की ओर से 85 करोड़ खर्च कर छह किमी 300 मीटर में ¨रग बांध बनाया जा रहा है। इसके अलावा यूपी सीमा के बीएसटी बांध से सटे तीन सेक्टर में बांट कर लगभग 23 करोड़ की लागत से कटानरोधी कार्य भी कराया जा रहा है। इन तमाम कार्यों पर नजर रखने की जिम्मेदारी बाढ़ खंड की है। जहां पर यह कटानरोधी कार्य हो रहा है, वहां घालमेल की तस्वीर हर दिन लोगों को दिखाई दे रही है। नदी के सतह से जो बोरी लगाकर लेबल करना है, उसके स्थान पर पहले उपर तक मशीन से बालू के रेत को नदी सतह से उपर तक लेबल किया जा रहा है, उसके बाद से बोरी डाली जा रही है ताकि बोरी कम लगे। ऐसे में जाहिर है जब नदी अपने तेवर में होगी तो अपने सतह से ही सबकुछ बहा ले जाएगी जैसा कि हर साल होता है। इसके बावजूद भी कोई रोकने-टोकने वाला नहीं है। भ्रष्टाचार के विरूद्ध लड़ने वाले महानायक की धरती को बचाने के नाम पर विभाग अपनी जेब भरने में लगा है। यहां हर साल काम होते रहे ¨कतु किसानों के पास अब खेती करने लायक जमीन भी नहीं बच पाई है। सभी किसान जो कभी जमींदार कहलाते थे इस नदी और विभागीय लूट-खसोट के चलते अभी भी पूरी तरह बर्बाद होते जा रहे हैं। अभी भी कटानरोधी कार्यों की गहन जांच हो तो कितनों की गर्दन फंसनी लगभग तय है ¨कतु अहम सवाल यह कि यह जांच करेगा कौन जब मौके पर मौजूद सभी के पांव यहां भ्रष्टाचार की दलदल में ही समाहित हैं।

साभार- दैनिक जागरण

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